Magarmach aur Bandar ki kahani– घने जंगल के बीचों-बीच एक सुंदर नदी बहती थी, जो पूरे जंगल को जीवन प्रदान करती थी। इस नदी में एक मगरमच्छ रहता था, जिसका नाम था मधुकर। मधुकर बेहद चालाक था, और जंगल के सभी जीवों में उसका डर व्याप्त था। उसकी तीखी नज़रें और मजबूत जबड़े उसे जंगल का सबसे खतरनाक शिकारी बनाते थे। लेकिन इन सबके बावजूद, मधुकर के मन में एक इच्छा थी – जंगल में किसी ऐसे साथी की खोज करना, जिससे वह बातें कर सके, क्योंकि बाकी जीव उससे डरते थे और उससे दूर रहते थे।
उसी जंगल में एक बंदर भी रहता था, जिसका नाम था बलभद्र। बलभद्र बहुत चंचल और हँसमुख था। वह जंगल के सभी जीवों का दोस्त था और हर समय नई-नई शरारतें करता रहता था। उसकी फुर्ती और बुद्धिमानी के कारण कोई भी जीव उससे नाराज नहीं होता था। जंगल में हर कोई उसकी हँसी और उसकी कहानियों का दीवाना था। लेकिन बलभद्र की एक और खासियत थी – वह बहुत ईमानदार और सच्चा था।
एक दिन, मधुकर ने नदी के किनारे एक पेड़ पर बैठे बलभद्र को देखा। वह पेड़ से फलों को तोड़कर नीचे गिरा रहा था और उसकी हरकतों पर खुद ही हँस रहा था। मधुकर ने सोचा कि यह बंदर उसकी उदासी को दूर कर सकता है। उसने बलभद्र को अपनी ओर बुलाया। बलभद्र को पहले थोड़ी हिचकिचाहट हुई, लेकिन फिर वह मधुकर के पास चला गया।
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मधुकर ने बलभद्र से कहा, “”मैं इस जंगल में अकेला महसूस करता हूँ। मुझसे कोई बात नहीं करता, सब मुझसे डरते हैं। तुम तो इतने हँसमुख और मिलनसार हो, क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे?””
बलभद्र ने मधुकर की बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोला, “”जरूर, मधुकर भाई! लेकिन हमें एक-दूसरे की मदद करनी होगी। तुम नदी की गहराई और तेज़ धारा से मुझे बचाओगे और मैं तुम्हें पेड़ से फल तोड़कर दूँगा।””(Magarmach aur Bandar ki kahani)
मधुकर को यह प्रस्ताव पसंद आया। दोनों ने एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा किया और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती गई। बलभद्र मधुकर को अपने साथ पेड़ों पर घुमाता, कहानियाँ सुनाता, और मधुकर उसे नदी के खतरों से बचाता था। दोनों एक-दूसरे के लिए अपरिहार्य हो गए थे।
हालाँकि, जंगल के अन्य जीव इस अनोखी दोस्ती को संदेह की नजर से देखते थे। उन्हें लगता था कि मधुकर इतनी आसानी से दोस्ती नहीं करता। धीरे-धीरे, बलभद्र को भी यह बात खटकने लगी कि कहीं मधुकर किसी चाल में तो नहीं है। उसने सोचा कि उसे मधुकर की परीक्षा लेनी चाहिए, ताकि उसकी नीयत का पता चल सके। इस विचार के साथ, बलभद्र ने एक योजना बनाई।
बलभद्र ने मधुकर की परीक्षा लेने की योजना बनाई, ताकि वह यह सुनिश्चित कर सके कि मधुकर वास्तव में उसका सच्चा मित्र है। एक दिन, बलभद्र ने मधुकर से कहा, “”मधुकर भाई, मैं आज बहुत भूखा हूँ और इस पेड़ के सबसे ऊँचे फल खाने का मन है, लेकिन वे मेरी पहुँच से बाहर हैं। क्या तुम मुझे पेड़ पर चढ़ने में मदद कर सकते हो?”” मधुकर ने हिचकिचाते हुए कहा, “”मेरा वजन इतना है कि अगर मैं पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करूँ, तो मैं गिर जाऊँगा। क्यों न तुम मेरी पीठ पर बैठकर सबसे ऊँचे फल तक पहुँचो?””(Magarmach aur Bandar ki kahani)
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बलभद्र ने मुस्कुराते हुए मधुकर के इस सुझाव को स्वीकार कर लिया। उसने पहली बार देखा कि मधुकर भी अपनी सीमाओं को समझकर काम करता है। वह मधुकर की पीठ पर बैठकर सबसे ऊँचे फल तक पहुँचा और फल तोड़कर मधुकर के साथ बाँटा। दोनों ने मिलकर फल का आनंद लिया, और उनकी दोस्ती और भी मजबूत हो गई।
एक अन्य दिन, दोनों नदी के किनारे टहल रहे थे कि अचानक मधुकर को एक समस्या का सामना करना पड़ा। नदी के तेज बहाव में एक हिरन का बच्चा फँस गया था। मधुकर ने हिरन के बच्चे को बचाने की कोशिश की, लेकिन वह खुद भी बहाव में बहने लगा। बलभद्र ने तुरंत समझदारी से काम लिया और पेड़ की एक मजबूत टहनी लेकर मधुकर की ओर बढ़ा दी। मधुकर ने उस टहनी को पकड़ा और दोनों ने मिलकर हिरन के बच्चे को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। इस घटना के बाद, जंगल के सभी जीवों ने मधुकर और बलभद्र की हिम्मत और समझदारी की प्रशंसा की।
इस तरह के कई और घटनाक्रम ने दोनों की दोस्ती को और भी गहरा कर दिया। एक बार, बलभद्र को एक खतरनाक शिकारी की खबर मिली, जो जंगल में जानवरों का शिकार करने आया था। मधुकर ने तुरंत बलभद्र को सुझाव दिया कि वे शिकारी को जंगल के गहरे और घने हिस्से में ले जाएँ, जहाँ शिकारी खो जाए और फिर कभी न लौटे। बलभद्र ने अपनी चालाकी से शिकारी को जंगल के ऐसे हिस्से में भटका दिया, जहाँ से निकलना मुश्किल था। शिकारी ने फिर कभी उस जंगल में कदम नहीं रखा।
लेकिन एक दिन, एक ऐसा मोड़ आया जिसने उनकी दोस्ती की परीक्षा ली। मधुकर के पुराने शिकारी मित्र ने उसे वापस नदी में एक बड़ा शिकार करने के लिए बुलाया। मधुकर दुविधा में पड़ गया, क्योंकि वह अपने पुराने दोस्तों के दबाव में आकर अपने नए दोस्त, बलभद्र, के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहता था। उसने यह बात बलभद्र को बताई, और बलभद्र ने उसे समझाया कि सच्ची दोस्ती किसी भी प्रलोभन से ऊपर होती है।
बलभद्र के इन शब्दों ने मधुकर को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने अपने पुराने दोस्तों को मना कर दिया और अपनी दोस्ती को प्राथमिकता दी। इससे बलभद्र को यह साबित हो गया कि मधुकर ने वास्तव में उसकी दोस्ती को दिल से स्वीकार कर लिया था।
अब उनकी दोस्ती पूरे जंगल में मिसाल बन गई थी। दोनों ने एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखा – मधुकर ने बलभद्र से ईमानदारी और निडरता, और बलभद्र ने मधुकर से धैर्य और समझदारी। उनकी दोस्ती की यह कहानी जंगल के अन्य जानवरों को भी एकजुट रहने की प्रेरणा देती थी।
मधुकर और बलभद्र की दोस्ती पूरे जंगल में एक मिसाल बन गई थी। उनकी मिलजुलकर रहने की आदत से जंगल के सभी जानवर प्रभावित थे। एक दिन, दोनों एक साथ बैठकर अपनी दोस्ती के बारे में बात कर रहे थे। मधुकर ने बलभद्र से कहा, “”बलभद्र, तुम्हारी वजह से मैंने बहुत कुछ सीखा है। मुझे एहसास हुआ है कि अपनी सीमाओं को समझना और उनका सम्मान करना भी बहुत ज़रूरी है।””
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बलभद्र ने मुस्कुराते हुए कहा, “”और मैंने तुमसे धैर्य और साहस सीखा है, मधुकर। तुम्हारी दोस्ती ने मुझे यह समझाया है कि हमें किसी की परवाह किए बिना भी अपने अपने डर का डटकर सामना करना चाहिए।”” यह सुनकर पास से गुज़रते जानवर भी मुस्कुरा उठे।
इसी दौरान, जंगल में एक बड़ा मेला आयोजित किया गया। सभी जानवरों ने इस मेले में हिस्सा लिया और अपनी कला और विशेषताओं का प्रदर्शन किया। मधुकर और बलभद्र ने भी अपने दोस्ती के संदेश को फैलाने का सोचा। उन्होंने मिलकर एक नाटक प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने दिखाया कि कैसे उनकी अनोखी दोस्ती ने न सिर्फ उन्हें, बल्कि पूरे जंगल को एकजुट कर दिया था।
नाटक के अंत में, मधुकर और बलभद्र ने एक संदेश दिया, “”दोस्ती किसी भी बंधन में नहीं बंधी होती। यह दिल से होती है, और सच्चे दिलों के बीच कोई कोई भी बाधा इस दोस्ती को नहीं तोड़ सकती।”” इस संदेश को सुनते ही सभी जानवरों ने तालियाँ बजाईं।
मेले के बाद, दोनों ने सोचा कि उनकी दोस्ती को और भी मजबूत बनाने के लिए कुछ अनोखा करना चाहिए। उन्होंने तय किया कि वे दोनों मिलकर एक ऐसा संगठन बनाएँगे, जहाँ जंगल के सभी जानवर अपनी समस्याएँ लेकर आ सकें और एक-दूसरे की मदद कर सकें। इस संगठन का नाम उन्होंने “”जंगल दोस्ती मंडल”” रखा।
इन सभी घटनाओं के बाद, मधुकर और बलभद्र ने सोचा कि अब उनकी दोस्ती को और भी मजबूत बनाने के लिए कुछ स्थायी करना चाहिए। इस विचार से प्रेरित होकर, उन्होंने एक संगठन बनाने का फैसला किया। मधुकर और बलभद्र ने इस मंडल में हर जानवर की भूमिका तय की। कोई पानी की व्यवस्था देखता था, तो कोई भोजन की। कुछ जानवरों ने सुरक्षा का जिम्मा लिया, तो कुछ ने जंगल की सफाई का। इस तरह, पूरा जंगल एक परिवार की तरह एकजुट हो गया।
इस संगठन की वजह से जंगल में खुशहाली और सद्भावना का माहौल बन गया। मधुकर और बलभद्र की दोस्ती ने यह साबित कर दिया कि एकता में ही शक्ति है। उनके इस प्रयास से जंगल के अन्य जानवरों को भी बहुत कुछ सीखने को मिला। सभी ने यह माना कि मधुकर और बलभद्र की दोस्ती ने जंगल को एक नई दिशा दी है।(Magarmach aur Bandar ki kahani)
आखिरकार, मधुकर और बलभद्र ने यह जान लिया कि दोस्ती सिर्फ एक भावना नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी भी है। उन्होंने अपने संगठन को सफल बनाने का वादा किया और एक साथ मिलकर जंगल को और भी बेहतर बनाने का प्रण लिया। उनकी अनोखी दोस्ती की कहानी जंगल में एक सुंदर दास्तान बनकर हमेशा के लिए अमर हो गई।”(Magarmach aur Bandar ki kahani)
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