jeevan mein kya jaruri hai भाग 1: सपनों की खोज
Jeevan Mein Kya Jaruri Hai- रामू का जीवन एक छोटे से गांव में बीतता था, जहां वह अपने माता-पिता के साथ रहता था। उनका परिवार बहुत ही साधारण था, लेकिन रामू के सपने बहुत बड़े थे। बचपन से ही वह शहर की चमक-धमक से प्रभावित था। उसने शहर के बारे में बहुत सी कहानियाँ सुनी थीं, जो उसे वहां के बड़े-बड़े घर, ऊंची इमारतें, और रोशनी से भरे रास्तों की कल्पना करने पर मजबूर करती थीं। उसका सपना था कि वह एक दिन शहर में जाकर नौकरी करे और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाए।
रामू के गांव में सभी लोग एक-दूसरे के सुख-दुःख में साझीदार थे। गांव का जीवन सरल था, परंतु रामू के मन में शहर की ऊँचाइयों को छूने की इच्छा थी। उसके पिता एक किसान थे, और वे चाहते थे कि रामू उनकी तरह खेती-किसानी करे। पर रामू का मन खेतों में नहीं लगता था। उसे हमेशा से लगता था कि उसकी किस्मत कहीं और चमकने वाली है।
रामू का सबसे अच्छा दोस्त नीलू था। नीलू भी उसके सपनों की तरह बड़ा सोचता था, लेकिन उसका स्वभाव ज्यादा व्यवहारिक था। नीलू के चाचा शहर में रहते थे और वहां नौकरी करते थे। एक दिन, नीलू ने रामू को बताया कि उसके चाचा उसकी मदद कर सकते हैं और उसे शहर में नौकरी दिलवा सकते हैं। यह सुनकर रामू बहुत खुश हुआ और उसने तुरंत अपने पिता से इस बारे में बात करने का निर्णय लिया।
रात का समय था। पूरा परिवार खाना खाकर आंगन में बैठा था। तभी रामू ने अपने पिता से बात शुरू की, “पिताजी, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।”
पिता ने प्यार से पूछा, “कह बेटा, क्या बात है?”
हेलो दोस्तो ! आपका इस वेबसाइट में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “Jeevan Mein Kya Jaruri Hai"| Hindi Kahani | हिंदी कहानी | Hindi Story" यह एक Motivational Story है। अगर आपको Hindi Kahani, Short Story in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
रामू ने साहस जुटाकर कहा, “पिताजी, मैं शहर जाना चाहता हूँ। नीलू के चाचा ने कहा है कि वे मुझे नौकरी दिलवा सकते हैं। मैं वहां जाकर हमारी आर्थिक स्थिति सुधार सकता हूँ।”
पिता ने गंभीर होकर कहा, “”बेटा, शहर में जीवन कठिन हो सकता है। वहां सिर्फ नौकरी ही नहीं, बहुत सी जिम्मेदारियाँ भी होती हैं। लेकिन यदि तेरा मन बना है, तो तुझे वहां अपना ध्यान रखना होगा।
रामू ने तुरंत जवाब दिया, पिताजी, मैं मेहनत करने के लिए तैयार हूँ। मैं जानता हूँ कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन मेरे सपने इतने बड़े हैं कि मैं हर मुश्किल का सामना करने को तैयार हूँ।(Jeevan Mein Kya Jaruri Hai)
रामू के पिता ने कुछ देर सोचने के बाद कहा, “अगर तुझे लगता है कि तू ये कर सकता है, तो मैं तुझे रोकूंगा नहीं। लेकिन एक बात याद रखना, सफलता के साथ जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती हैं। अपना और अपने परिवार का ध्यान रखना कभी मत भूलना।”
रामू ने अपने पिता की बातों को ध्यान से सुना और वादा किया कि वह अपनी जिम्मेदारियों को समझेगा और उनका पालन करेगा। उसे अब सिर्फ अपने सपनों को साकार करने का इंतजार था।(jeevan mein kya jaruri hai)
कुछ दिनों बाद, रामू ने गांव को अलविदा कहा और शहर की ओर निकल पड़ा। शहर पहुंचने पर, उसने अपने सपनों को साकार करने के लिए पहले कदम उठाया। नीलू के चाचा ने उसकी मदद की और उसे एक फैक्टरी में नौकरी दिलवा दी। फैक्टरी में काम कठिन था, लेकिन रामू ने कभी हार नहीं मानी। उसने दिन-रात मेहनत की और अपनी नौकरी में सफल होने के लिए पूरी कोशिश की।
धीरे-धीरे, रामू की मेहनत रंग लाई। उसकी नौकरी में तरक्की होने लगी, और उसकी आमदनी भी बढ़ गई। उसने अपने परिवार के लिए पैसे भेजना शुरू कर दिया और उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार आने लगा। रामू को लगा कि उसने अपने सपनों को सच कर दिखाया है।
परंतु जैसे-जैसे समय बीतता गया, रामू के जीवन में एक अजीब सी खालीपन की भावना घर करने लगी। उसकी जिंदगी में अब पैसा और सफलता तो थी, लेकिन उसे लगने लगा कि उसकी खुशियों में कुछ कमी है। हर रोज़ वह अपने काम में व्यस्त रहता, लेकिन मन में एक सवाल उठता रहता – “”क्या मैं सच में खुश हूँ?””
रामू ने सोचा कि उसने जो सपना देखा था, वह अब पूरा हो चुका है, लेकिन इस सपने को पाने के चक्कर में उसने अपने परिवार और गांव को नजरअंदाज कर दिया। उसे महसूस हुआ कि वह जितना भी सफल हो जाए, अगर उसके परिवार और गांव के लोग उसके साथ नहीं हैं, तो उसकी सफलता अधूरी है।
रामू के मन में यह विचार गहराते गए कि उसने अपनी असली जड़ों को छोड़ दिया है। उसने यह भी महसूस किया कि गांव में रहते हुए जो शांति और संतोष उसे मिला करता था, वह शहर की चकाचौंध में खो गया है। शहर की इस तेज़ रफ्तार जिंदगी में उसने अपने रिश्तों और भावनाओं को पीछे छोड़ दिया है।
रामू ने यह तय कर लिया कि अब उसे अपने जीवन के इस अधूरेपन को भरने के लिए कुछ करना होगा। उसने सोचा कि क्या वह गांव वापस लौटकर अपने परिवार के साथ रह सकता है? क्या वह अपनी सफलता को गांव में इस्तेमाल कर सकता है ताकि गांव के अन्य लोग भी तरक्की कर सकें?
यह सवाल उसके मन में लगातार उठते रहे, और वह इस उलझन में था कि आगे क्या करना चाहिए। एक ओर उसका शहर में सफल करियर था, और दूसरी ओर उसके परिवार और गांव के प्रति उसकी जिम्मेदारियाँ।
आगे की योजना
रामू ने यह तय कर लिया कि वह इस उलझन से बाहर निकलने के लिए अपने परिवार से बात करेगा। उसने एक दिन छुट्टी ली और गांव जाने का निर्णय लिया। गांव पहुंचने पर उसका दिल बहुत हल्का महसूस हुआ। वहां की ताजी हवा, हरियाली, और गांव के लोगों का स्नेह उसे बहुत सुकून देने लगा।
रामू ने अपने माता-पिता से बात की और अपने दिल की बातें उनके सामने रखीं। उसने अपने सपनों को पूरा करने के लिए शहर में जो संघर्ष किया, उसका ब्योरा दिया, लेकिन साथ ही यह भी बताया कि उसकी खुशी अधूरी है। उसने अपने माता-पिता से सलाह मांगी कि अब उसे क्या करना चाहिए।
उसके माता-पिता ने उसे समझाया कि वह जो भी फैसला ले, उसमें उसका और परिवार का भला होना चाहिए। रामू के पिता ने कहा, “”बेटा, सपने देखना और उन्हें पूरा करना अच्छी बात है, लेकिन असली खुशी अपने लोगों के साथ रहने में होती है। अगर तू यहां रहकर गांव के लिए कुछ कर सके, तो तेरे सपने और भी बड़े हो सकते हैं।””
रामू ने यह सुनकर मन ही मन यह निर्णय लिया कि वह अब गांव वापस आएगा और अपने गांव के लोगों के लिए कुछ करेगा। उसने सोचा कि क्यों न वह अपनी सफलता का उपयोग गांव में नई चीजें लाने के लिए करे, जैसे कि गांव के बच्चों के लिए शिक्षा की सुविधाएं, किसानों के लिए नई तकनीकें, और गांव के विकास के लिए नए अवसर।
रामू के जीवन का यह मोड़ उसे नई दिशाओं में ले जाएगा, जहां वह न सिर्फ अपने सपनों को फिर से परिभाषित करेगा, बल्कि अपने गांव और परिवार के लिए भी एक नई रोशनी बनकर उभरेगा। उसकी यह यात्रा उसे यह समझने में मदद करेगी कि असली सपने सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों की भलाई के लिए भी होते हैं।
jeevan mein kya jaruri hai भाग 2: सच्ची खुशी की प्राप्ति
रामू के मन में यह स्पष्ट हो गया था कि उसने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से, अपने परिवार और गांव, को पीछे छोड़ दिया था। शहर की चकाचौंध और सफल करियर के पीछे भागते हुए उसने अपने दिल की आवाज़ को अनसुना कर दिया था। एक दिन, जब वह अपनी फैक्टरी की छत पर बैठा था, उसे अपने बचपन के दिन याद आने लगे। उसे गांव की मिट्टी की खुशबू, अपने पिता की मुस्कान, और गांव के त्योहारों की याद सताने लगी। उसे महसूस हुआ कि जो अधूरापन वह महसूस कर रहा है, वह उसकी जड़ों से दूर जाने का परिणाम है।
अंततः, रामू ने शहर को अलविदा कहने का निर्णय लिया। उसने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और एक छोटे से बैग में अपने सामान को समेटकर गांव की ओर चल पड़ा। उसकी आंखों में एक नई चमक थी और दिल में अपने परिवार के साथ समय बिताने की उत्सुकता।
गांव पहुंचने पर रामू का स्वागत उसके परिवार और दोस्तों ने बड़ी गर्मजोशी से किया। उसके माता-पिता के चेहरे पर खुशी और राहत थी। उन्होंने रामू को गले लगाया और उसकी वापसी पर खुशी जताई। रामू को अपने गांव की सादगी और शांति में सच्ची खुशी मिली, जिसे वह शहर की चकाचौंध में खो बैठा था।
रामू ने अपने पिता से कहा, “”पिताजी, मुझे माफ कर दीजिए कि मैंने आपकी बात नहीं मानी और शहर में जाने का फैसला किया। मैंने धन और सफलता के पीछे भागते हुए अपने परिवार को नजरअंदाज कर दिया। अब मैं यहां वापस आ गया हूँ और चाहता हूँ कि आपके साथ रहूं और आपके साथ काम करूं।””
रामू के पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, “”बेटा, तुझे माफी मांगने की जरूरत नहीं है। तूने जो भी किया, वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए किया। लेकिन यह अच्छा है कि तुझे समय रहते अपनी गलती का एहसास हो गया। अब हम सब मिलकर एक साथ रहेंगे और एक-दूसरे की मदद करेंगे।””
रामू ने अपने पिता के साथ खेतों में काम करना शुरू कर दिया। वह सुबह जल्दी उठता, अपने पिता के साथ खेतों में जाता, और दिनभर मेहनत करता। उसे इस काम में एक नई ताजगी महसूस होती थी। जहां पहले उसे फैक्टरी की बंद दीवारों के अंदर काम करना पड़ता था, वहीं अब वह खुले आसमान के नीचे, हरे-भरे खेतों में काम करता था। उसे महसूस हुआ कि यह काम न केवल उसे मानसिक शांति देता है, बल्कि उसे अपने परिवार और गांव के लोगों के साथ भी जोड़ता है। (Jeevan Mein Kya Jaruri Hai)
रामू ने अपने गांव के लोगों के लिए भी कुछ करने का निर्णय लिया। उसने अपने शहर के अनुभवों का उपयोग करके गांव में खेती के नए तरीकों को लागू किया। उसने अपने गांव के किसानों को नई तकनीकें सिखाईं और उन्हें अधिक उत्पादन करने के तरीकों के बारे में जानकारी दी। गांव के लोग रामू की मेहनत और उसकी सोच की प्रशंसा करने लगे।
रामू ने अपने गांव के बच्चों के लिए भी कुछ करना चाहा। उसने गांव में एक छोटे स्कूल की स्थापना की, जहां बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके। उसने यह सुनिश्चित किया कि गांव के हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले, जिससे वे भी बड़े होकर अपने सपनों को साकार कर सकें। यह देखकर रामू के माता-पिता को गर्व महसूस हुआ, और उन्हें लगा कि उनका बेटा सच में जीवन में एक सही दिशा में आगे बढ़ रहा है।(jeevan mein kya jaruri hai)
रामू के जीवन में अब शांति और संतोष लौट आया था। उसे यह समझ में आ गया था कि सच्ची खुशियाँ किसी ऊँची नौकरी या बड़े शहर में नहीं मिलतीं, बल्कि वे छोटे-छोटे पलों में मिलती हैं जो हम अपने परिवार और दोस्तों के साथ बिताते हैं। उसे यह भी एहसास हुआ कि उसका गांव ही उसकी असली जड़ें हैं, और वहीं उसे सच्ची खुशी मिल सकती है।
शहर की तेज रफ्तार जिंदगी ने उसे सिर्फ भौतिक सुख दिए थे, लेकिन गांव में रहते हुए उसने आत्मिक शांति और सच्ची खुशियों का अनुभव किया। वह अब अपने माता-पिता के साथ रहकर उनकी देखभाल करता था, उनके साथ खेतों में काम करता, और हर शाम को उनके साथ बैठकर गांव की बातें करता। उसे अपनी पुरानी ज़िंदगी की तुलना में अब ज़्यादा संतुष्टि और खुशी मिलती थी।
रामू ने अपने जीवन का एक नया दृष्टिकोण पाया था। वह अब केवल अपने लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार, अपने गांव, और वहां के लोगों के लिए जी रहा था। उसने महसूस किया कि जब हम अपनी खुशियों को दूसरों के साथ बाँटते हैं, तो वे और बढ़ जाती हैं। वह अब अपने गांव के हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा बन चुका था, और उसकी यह सोच पूरे गांव में फैल गई थी।
गांव के लोग रामू की प्रशंसा करते हुए कहते थे, “रामू ने हमें सिखाया है कि सच्ची खुशियाँ किसी भी बाहरी चीज़ में नहीं, बल्कि हमारे अपने लोगों के साथ होती हैं।”
रामू ने अब यह ठान लिया था कि वह जीवनभर अपने गांव के विकास और उन्नति के लिए काम करेगा। उसने अपनी सफलता को केवल अपने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे पूरे गांव के साथ साझा किया। रामू की इस सोच ने उसके जीवन को न केवल एक नई दिशा दी, बल्कि उसे जीवन में सच्ची खुशियों की प्राप्ति भी कराई।
jeevan mein kya jaruri hai का अंत
रामू की jeevan mein kya jaruri hai इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि जीवन में सच्ची खुशी और संतोष पाने के लिए हमें अपने परिवार और संबंधों को प्राथमिकता देनी चाहिए। जब हम अपने सपनों को पाने की दौड़ में अपने परिवार और रिश्तों को पीछे छोड़ देते हैं, तो हमें सफलता के साथ-साथ अधूरापन भी महसूस होता है। लेकिन जब हम अपने अपनों के साथ रहते हैं, उनके साथ समय बिताते हैं, तो हमें सच्ची संतुष्टि और खुशी का एहसास होता है।
रामू की इस यात्रा ने उसे यह सिखाया कि जीवन में धन और संपत्ति का महत्व जरूर है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है अपने परिवार और अपनों के साथ रहकर खुशियों को पाना। उसकी इस समझ ने उसे न केवल एक अच्छा इंसान बनाया, बल्कि उसे जीवन की सच्ची खुशी और संतोष की प्राप्ति भी कराई। (Jeevan Mein Kya Jaruri Hai)
Jeevan Mein Kya Jaruri Hai मोरल:
जीवन में सच्ची खुशियाँ पाने के लिए धन और संपत्ति के पीछे नहीं भागना चाहिए, बल्कि परिवार और संबंधों को महत्व देना चाहिए।”
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