भूखी लोमड़ी की कहानी भाग 1: भूख और प्रयास
भूखी लोमड़ी की कहानी- एक घने और विशाल जंगल के बीच, जहां पेड़-पौधे घने थे और पक्षियों की चहचहाहट निरंतर सुनाई देती थी, वहां एक लोमड़ी काफी दिनों से भूखी थी। वह लोमड़ी जिसे जंगल के हर हिस्से में घूमने का और खजाने की तरह भोजन तलाशने का आदत थी, इस बार बहुत दिनों से भूखी थी। उसकी पीली-सी चमड़ी अब थकी हुई लग रही थी, और उसकी आँखों में एक अजीब सा खालीपन था। उसने अपनी भूख को शांत करने के लिए हर मुमकिन प्रयास किया, लेकिन कुछ भी काम नहीं आ रहा था।

हेलो दोस्तो ! आपका इस वेबसाइट में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “भूखी लोमड़ी की कहानी"| Hungry Fox Story| हिंदी कहानी यह एक Animal Story है। अगर आपको Animal Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
लोमड़ी का पेट कभी भी इतना खाली नहीं था। उसे कई दिन हो गए थे बिना कुछ खाए। पहले तो उसने अपने जंगल के पास के जानवरों के पास खाने की कोशिश की थी, लेकिन कभी एक खरगोश भाग गया, कभी एक मूस ने उसे चकमा दे दिया। उसकी असफलताओं ने उसे और भी कमजोर बना दिया था, लेकिन उसकी आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं आई थी। वह जानती थी कि भूख और थकान उसे नहीं रोक सकती थी। उसकी आखिरी उम्मीद जिंदा थी, और वह उसके लिए हर संभव कोशिश करने को तैयार थी।(भूखी लोमड़ी की कहानी)
एक दिन, जंगल के उस हिस्से में, जहाँ वह निरंतर अपनी भूख को शांत करने के लिए दौड़ती रहती थी, उसने कुछ नया महसूस किया। हवा में एक अलग सी खुशबू आ रही थी। उसकी नाक की नोक पर जैसे ही यह खुशबू पहुंची, उसकी आँखें चमक उठी। यह खुशबू फल और ताजे फूलों की थी। लोमड़ी ने नज़रें घुमाईं, और दूर एक छोटा सा गाँव दिखाई दिया। उसके दिल में उत्साह की एक लहर दौड़ी। यह गाँव उसे किसी मोक्ष के समान प्रतीत हुआ था, क्योंकि यहाँ उसे शायद कुछ खाने को मिल सकता था।
लोमड़ी ने संकल्प किया कि वह गाँव तक जरूर पहुंचेगी। उसका कदम अब तेज हो चुका था। भूख की तीव्रता ने उसकी यात्रा को और भी महत्वपूर्ण बना दिया था। वह अब पहले से ज्यादा सतर्क थी और जैसे ही उसने गाँव का रास्ता पकड़ा, उसके शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। उसका उद्देश्य स्पष्ट था – खाने के लिए कुछ हासिल करना।(भूखी लोमड़ी की कहानी)
गाँव के पास पहुँचते-पहुँचते लोमड़ी का ध्यान अपनी भूख और आसपास के माहौल पर था। गाँव में एक किसान का बागीचा था, और वह बागीचा लोमड़ी के पास से गुजर रहा था। बागीचा में ढेर सारी फल-फूल लदे हुए थे – अमरूद, आम, केले, और टमाटर। लोमड़ी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसकी आँखों में चमक आ गई थी। उसे इन फलों का ख्याल आते ही पता चल गया कि आज उसकी भूख शांत होने वाली है। लेकिन फिर उसकी आँखों में एक शंका भी आई। यह बागीचा किसान का था, और किसान बहुत सख्त होते थे। अगर उसने बागीचे में घुसने की कोशिश की, तो वह शायद पकड़ी जाएगी और उसकी हालत और भी बुरी हो सकती थी।(भूखी लोमड़ी की कहानी)
लोमड़ी को यह स्थिति बहुत कठिन लगी। उसने सोचा, “क्या मैं इन फलों को चुराने की कोशिश करूँगी? क्या यह सही है?” लेकिन फिर उसकी भूख ने उसे कोई और विकल्प नहीं दिया। वह सोचने लगी कि अगर वह कुछ भी खाती है, तो उसकी भूख को राहत मिलेगी। उसने सोचा, “आज तक मैंने अपनी मेहनत से बहुत कुछ किया है, अब अगर यह बागीचा मुझे जीवन का आहार दे रहा है, तो मैं इसे क्यों न अपनाऊँ?”(भूखी लोमड़ी की कहानी)
वह धीरे-धीरे बागीचे की ओर बढ़ी। उसने पाया कि बागीचा के एक कोने में एक बड़ा आम का पेड़ खड़ा था, जिसकी शाखाएँ झुकी हुई थीं। पेड़ के नीचे कुछ फल गिरे हुए थे। लोमड़ी को यह देखकर राहत मिली, क्योंकि वह बागीचे में घुसने की बजाय सिर्फ गिरा हुआ फल खाकर अपनी भूख शांत कर सकती थी। उसने एक-एक फल उठाना शुरू किया। पहले एक आम खाया, फिर एक अमरूद और फिर एक केला। फल उसकी भूख को थोड़ी राहत दे रहे थे, लेकिन उसकी तृप्ति अभी भी अधूरी थी।
लोमड़ी जानती थी कि अगर वह थोड़ी और मेहनत करेगी, तो उसे और भी कुछ मिल सकता है। उसने थोड़ा और समय बर्बाद किए बिना, बागीचे के अंदर की ओर झाँका। वहाँ एक बड़ा सेब का पेड़ था, जो उसकी आँखों के सामने खड़ा था। सेब के लाल-लाल फल पेड़ से लटक रहे थे, और लोमड़ी को लगा कि अगर वह उन तक पहुँच सके, तो उसे कुछ और ताजगी मिल सकती है।(भूखी लोमड़ी की कहानी)
लोमड़ी ने अपनी रणनीति बनाई। उसने पहले पेड़ के पास जाकर देखा कि कहीं किसान आसपास तो नहीं है। फिर जैसे ही वह निश्चिंत हो गई कि किसान कहीं नजर नहीं आ रहा, उसने पेड़ के पास जाकर उसकी शाखाओं को झुकाया और सेब तोड़ने की कोशिश की। यह थोड़ा कठिन था, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसकी मेहनत रंग लाई, और उसे आखिरकार एक ताजा सेब मिल गया। लोमड़ी ने वह सेब चखा और उसकी भूख को लगभग शांत कर लिया।
लोमड़ी अब संतुष्ट थी, लेकिन फिर भी उसकी आँखों में एक चिंता थी। “क्या यह सही था?” उसने खुद से पूछा। “क्या मुझे इस बागीचे से कुछ और लेकर भागना चाहिए था?”
वह सोचने लगी, लेकिन उसकी भूख ने उसे संकेत दिया कि उसने आज अपनी भूख को शांत किया है, और यही उसकी सबसे बड़ी सफलता थी।
भूखी लोमड़ी की कहानी भाग 2: चालाकी और सीख
लोमड़ी ने बागीचे से कुछ फल लेकर थोड़ी राहत महसूस की थी, लेकिन फिर भी उसके मन में एक संकोच था। वह जानती थी कि उस दिन की सफलता स्थायी नहीं थी। उसने जो किया था, वह शायद आसान था, लेकिन उसमें एक धोखा था। अपनी भूख को शांत करने के लिए वह अपनी नैतिकता से समझौता कर चुकी थी, और यह उसे अंदर से परेशान कर रहा था। वह सोचने लगी, “क्या मेरी मेहनत से यह फल प्राप्त नहीं हो सकते थे? क्या मैं सही रास्ते पर चल रही हूँ?”(भूखी लोमड़ी की कहानी)
जंगल में बैठकर उसने अपनी स्थिति का आकलन किया। “आज मैं जो कुछ भी खा चुकी हूँ, वह मुझे किस मूल्य पर मिला?” उसने अपने फैसले पर सवाल उठाए। वह जानती थी कि कुछ चीज़ें हमें सिर्फ मेहनत से ही मिलती हैं, लेकिन कभी-कभी हमारी मानसिकता हमें उस रास्ते से हटा देती है, जो सही होता है। लोमड़ी ने अब तय किया कि अगर वह फिर से किसी बागीचे तक पहुँचेगी, तो वह ईमानदारी से काम करेगी और किसी को धोखा नहीं देगी।
कुछ दिन बाद, लोमड़ी को फिर से भूख महसूस होने लगी। वह फिर उसी जंगल से होकर गुजरने वाली थी, लेकिन अब उसके मन में धोखा देने का कोई विचार नहीं था। वह जानती थी कि उसे अपनी भूख शांत करने के लिए कुछ करने की जरूरत थी, लेकिन अब उसने अपनी पुरानी आदतें बदलने का संकल्प लिया।
तभी उसकी नज़र उस बागीचे पर पड़ी, जहाँ से वह कुछ दिन पहले फल ले आई थी। बागीचा फिर से भरा हुआ था – आम, अमरूद, केले, और सेब। लोमड़ी का दिल फिर से उन फलों के लिए तड़प उठा, लेकिन अब उसने निर्णय लिया कि वह इस बार धोखा देने की बजाय ईमानदारी से मदद माँगेगी।
लोमड़ी ने बागीचे में जाकर देखा कि किसान अपने काम में व्यस्त था। उसे देखते हुए, लोमड़ी ने एक और योजना बनाई। वह धीरे-धीरे किसान के पास गई और अपनी सबसे मीठी आवाज में कहा, “किसान भाई, मैं जंगल से आई हूँ, और मुझे कुछ फल ले जाने की जरूरत है। मेरी मदद करिए, कृपया। मैं भूखी हूँ और अगर आप मुझे थोड़े से फल दे सकते हैं, तो मुझे बहुत खुशी होगी।”(भूखी लोमड़ी की कहानी)
किसान ने उसकी बातों को सुना और सोचा कि यह एक मासूम सी लोमड़ी है। वह न समझ पाया कि लोमड़ी शायद कोई चाल चल रही है। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हारी बात समझता हूँ, लोमड़ी। पर तुम मेरे बागीचे से फल ले जाओ, मगर याद रखना, मुझे मेरी मेहनत का फल वापस मिलना चाहिए।”
लोमड़ी ने महसूस किया कि किसान ने न सिर्फ ईमानदारी से बात की थी, बल्कि उसकी मदद स्वीकारने से उसे जीवन की एक नई राह दिखाई थी। किसान ने उसे कुछ फल दे दिए, लेकिन अब उसकी बुद्धि ने यह भी समझ लिया कि उसे जो मिला है, वह एकतरफा नहीं होना चाहिए। उसने किसान से कहा, “धन्यवाद, किसान भाई! मैं इन फलों के बदले तुम्हें कुछ भी देना चाहती हूँ।”
किसान ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “तुमने अपने हिस्से का फल लिया है। तुम्हारी ईमानदारी ही मेरी मदद की है, लोमड़ी।”
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