राजा की 7 बेटियों की कहानी भाग 1: राजा और उसकी बेटियां
राजा की 7 बेटियों की कहानी– बहुत समय पहले की बात है। एक विशाल और समृद्ध राज्य में राजा विक्रम सिंह शासन करता था। वह न्यायप्रिय, बुद्धिमान और अपने राज्य की प्रजा के प्रति दयालु था। उसके शासन में राज्य की प्रजा सुखी और समृद्ध थी।
राजा की सात सुंदर और गुणवान बेटियां थीं। हर बेटी का स्वभाव अलग था, लेकिन सभी को राजा बहुत प्यार करता था। वे सभी महल में रहकर शिक्षा, कला, युद्धकला और जीवन के विभिन्न गुणों को सीख रही थीं।

हेलो दोस्तो ! आपका इस वेबसाइट में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “राजा की 7 बेटियों की कहानी”| “Raja Ki 7 betiyon Ki Kahani”| हिंदी कहानी यह एक Animal Story है। अगर आपको Animal Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
राजा विक्रम सिंह की उम्र बढ़ रही थी, और अब उसे यह चिंता सताने लगी थी कि उसकी बेटियां केवल महल की सुख-सुविधाओं में ही न पली-बढ़ी रहें, बल्कि जीवन के असली मूल्यों को भी समझें। वह चाहता था कि उसकी बेटियां बुद्धिमान बनें और जीवन में सच्चे प्रेम और मूल्य की पहचान करना सीखें।(राजा की 7 बेटियों की कहानी)
एक दिन राजा ने सोचा कि वह अपनी बेटियों की परख करेगा और यह देखेगा कि उनमें से कौन सबसे अधिक समझदार है।
एक दिन, राजा ने अपनी सातों बेटियों को राजमहल के बड़े दरबार में बुलाया। दरबार में सभी मंत्री, सेनापति और दरबारी उपस्थित थे।
राजा ने अपनी बेटियों को देखा और मुस्कुराते हुए पूछा,
“मेरी प्रिय बेटियों, तुम मुझे कितना प्यार करती हो?”
बेटियों ने एक-दूसरे की ओर देखा। सभी जानती थीं कि राजा उनसे बहुत प्रेम करता है, लेकिन अब उन्हें यह साबित भी करना था कि वे अपने पिता से कितना प्रेम करती हैं।
पहली छह बेटियों ने बड़ी प्रसन्नता से अपने-अपने उत्तर दिए।
- पहली बेटी बोली, “पिताजी, मैं आपसे सोने और चांदी जितना प्यार करती हूँ।”
- दूसरी बेटी ने कहा, “पिताजी, आप मेरे लिए अनमोल हीरे-जवाहरात की तरह हैं।”
- तीसरी बेटी ने कहा, “मैं आपको इस राज्य के सबसे खूबसूरत रत्नों की तरह प्यार करती हूँ।”
- चौथी बेटी ने कहा, “आप मेरे लिए फूलों की तरह सुगंधित और सुंदर हैं।”
- पांचवीं बेटी बोली, “पिताजी, मैं आपसे शहद जितना मीठा प्यार करती हूँ।”
- छठी बेटी ने कहा, “आप मेरे लिए अमृत के समान हैं, जो जीवन को अमर कर सकता है।”
राजा अपनी बेटियों के उत्तर सुनकर प्रसन्न हो गया। वह सोचने लगा कि उसकी बेटियां सच में उसे बहुत प्यार करती हैं। लेकिन अभी एक बेटी का उत्तर आना बाकी था—सबसे छोटी बेटी, सुहानी।
सुहानी राजा की सबसे छोटी बेटी थी। वह अपने सरल स्वभाव और बुद्धिमानी के लिए जानी जाती थी। वह ज्यादा बोलती नहीं थी, लेकिन जब भी कुछ कहती थी, तो उसमें गहरी समझ छिपी होती थी।
जब राजा ने उससे पूछा, तो उसने मुस्कुराते हुए धीरे से उत्तर दिया,(राजा की 7 बेटियों की कहानी)
“पिताजी, मैं आपसे नमक जितना प्यार करती हूँ।”
यह सुनकर पूरा दरबार सन्न रह गया।
राजा विक्रम सिंह को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। उसकी बाकी बेटियों ने उसे सोने, चांदी, हीरे-जवाहरात, फूल, शहद और अमृत से तुलना की थी, लेकिन सुहानी ने नमक का नाम लिया!
गुस्से में राजा ने कहा,
“क्या? तुम मुझे नमक जितना प्यार करती हो? क्या तुम्हारे लिए मेरा महत्व बस एक साधारण चीज़ जितना है?”
सुहानी ने धीरे से उत्तर दिया,
“पिताजी, नमक बहुत मूल्यवान है। बिना नमक के कोई भी भोजन स्वादिष्ट नहीं लगता। नमक हमारी जरूरत है, बिना उसके जीवन अधूरा है। मेरा प्रेम भी आपके प्रति ऐसा ही है—सीधा, सच्चा और अनमोल।”
लेकिन राजा विक्रम सिंह को यह जवाब समझ में नहीं आया। वह गुस्से में आ गया और बोला,
“यदि मैं तुम्हारे लिए केवल नमक जितना ही मूल्यवान हूँ, तो अब तुम्हें इस महल में रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। जाओ, और जहां चाहो वहाँ चली जाओ!”
सुहानी यह सुनकर दुखी हो गई, लेकिन उसने राजा से कोई बहस नहीं की। उसने चुपचाप महल छोड़ दिया।
राजा ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की। उसे लगा कि उसकी छोटी बेटी उसकी महत्ता को समझ नहीं पाई और यह उसके लिए एक दंड है।
सुहानी अकेले ही एक दूसरे राज्य की ओर चल पड़ी। वह जानती थी कि उसका प्रेम सच्चा था, लेकिन जब तक राजा खुद इसका एहसास नहीं करेगा, तब तक वह उसे समझा नहीं सकती थी।
कुछ ही दिनों बाद, राजा को सुहानी की कमी खलने लगी। वह जानता था कि उसकी छोटी बेटी उसकी सबसे समझदार संतान थी। लेकिन वह यह स्वीकार करने को तैयार नहीं था कि उसने उससे अन्याय किया है।
परंतु समय के साथ राजा को यह भी महसूस हुआ कि सुहानी का उत्तर किसी गहरी सच्चाई को दर्शाता था।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी—सुहानी अब राज्य में नहीं थी।(राजा की 7 बेटियों की कहानी)
राजा की 7 बेटियों की कहानी भाग 2: सुहानी की बुद्धिमानी और सच्चाई का प्रभाव
राजा विक्रम सिंह के आदेश पर सुहानी ने महल छोड़ दिया। वह न तो गुस्से में थी, न ही दुखी—बल्कि उसे पूरा विश्वास था कि समय के साथ उसके पिता को उसकी बात समझ आ जाएगी।
सुहानी ने जंगलों और नदियों को पार करते हुए एक दूरस्थ गांव में शरण ली। यह गांव राजा के राज्य की सीमा से बाहर था और यहां के लोग बेहद साधारण जीवन जीते थे। सुहानी ने अपने असली नाम और पहचान को छिपा लिया और एक साधारण ग्रामीण लड़की की तरह रहने लगी।
गांव में सुहानी ने देखा कि लोग छोटी-छोटी समस्याओं के कारण परेशान रहते थे। वह अपनी बुद्धिमानी और कुशलता से उनकी मदद करने लगी।
जब गांव में पानी की समस्या हुई, तो उसने लोगों को तालाब बनाने का सुझाव दिया।
जब फसल बर्बाद होने लगी, तो उसने किसानों को नए तरीके से खेती करने की सलाह दी।
गांव के गरीब बच्चों को उसने पढ़ना-लिखना सिखाया।
धीरे-धीरे पूरा गांव सुहानी को बुद्धिमान लड़की मानने लगा। सब लोग उसका सम्मान करने लगे, लेकिन कोई यह नहीं जानता था कि वह एक राजकुमारी है।
कुछ महीनों बाद राजा विक्रम सिंह के राज्य में एक विशाल उत्सव आयोजित किया गया। यह उत्सव राजा के शासन की वर्षगांठ मनाने के लिए था और इसमें पूरे राज्य के लोग आमंत्रित थे।
गांव के लोग भी इस उत्सव में आमंत्रित थे। जब सुहानी को यह समाचार मिला, तो उसके मन में एक योजना आई।
“अब समय आ गया है कि मैं अपने पिता को उनकी गलती का एहसास दिलाऊं।”
सुहानी ने अपने गांव के लोगों के साथ राजा के राज्य में जाने का निश्चय किया।
जब वह राजधानी पहुंची, तो उसने राजा के महल के मुख्य रसोइये से संपर्क किया और कहा कि वह उत्सव के लिए खाना बनाने में मदद करना चाहती है।
रसोइया पहले तो हिचकिचाया, लेकिन जब उसने सुहानी की बुद्धिमानी और कुशलता देखी, तो उसने उसे महल की रसोई में काम करने की अनुमति दे दी।
सुहानी ने अपनी योजना के अनुसार सभी पकवानों से नमक हटा दिया।
उत्सव का दिन आ गया। राजा, उसकी छह बेटियां, मंत्री, सेनापति और सैकड़ों अतिथि विशाल भोज के लिए तैयार बैठे थे।
जैसे ही भोजन परोसा गया, लोग पहला कौर खाते ही अजीब सा मुंह बनाने लगे।
राजा विक्रम सिंह ने पहला निवाला लिया और तुरंत ही गुस्से से चिल्ला उठा।
“यह क्या बेहूदा मज़ाक है? यह भोजन बिल्कुल बेस्वाद है! इसमें तो ज़रा भी नमक नहीं है!”
दरबारियों और मेहमानों ने भी अपनी असहमति जताई।
राजा ने तुरंत महल के रसोइये को बुलाया और पूछा,
“यह किसने बनाया? इसमें नमक क्यों नहीं डाला?”
रसोइये ने झिझकते हुए कहा,
“महाराज, यह भोजन एक नई लड़की ने बनाया है। वह खुद कह रही थी कि यह भोजन बहुत खास है और आपको जरूर पसंद आएगा।”
राजा ने गुस्से में कहा,
“उस लड़की को मेरे सामने लाओ!”
कुछ ही क्षणों में सुहानी दरबार में उपस्थित हुई। वह अब किसी साधारण लड़की की तरह नहीं, बल्कि बुद्धिमान राजकुमारी की तरह खड़ी थी।
राजा उसे देखते ही हैरान रह गया।
“सुहानी?! तुम यहाँ क्या कर रही हो?”
सुहानी ने विनम्रता से उत्तर दिया,
“पिताजी, आपने मुझसे पूछा था कि मैं आपसे कितना प्यार करती हूँ। मैंने कहा था कि मैं आपसे नमक जितना प्यार करती हूँ। लेकिन आपको मेरी बात समझ नहीं आई और आपने मुझे महल से निकाल दिया।”
“आज जब आपके भोजन से नमक निकाल दिया गया, तो आपको कैसा लगा?”
राजा ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसे अपनी गलती का गहरा एहसास हुआ।
“पिताजी, जैसे भोजन में नमक के बिना कोई स्वाद नहीं होता, वैसे ही मेरे लिए आप अनमोल हैं। मैं आपसे सीधा, सच्चा और गहरा प्रेम करती हूँ—बिल्कुल वैसे ही जैसे भोजन में नमक जरूरी होता है।”
राजा की आँखों में आँसू आ गए। उसे समझ में आ गया कि उसकी छोटी बेटी सभी से अधिक बुद्धिमान थी और उसका प्रेम सबसे गहरा था।
वह अपनी गद्दी से उठा और आगे बढ़कर सुहानी को गले लगा लिया।
“मुझे माफ कर दो, बेटी! मैंने तुम्हारी सच्ची भावना को नहीं समझा। तुमने मुझे जीवन का सबसे बड़ा सबक सिखाया है।”
राजा ने तुरंत घोषणा की कि सुहानी को राजमहल में वापस लाया जाएगा और उसे राज्य की सबसे बुद्धिमान राजकुमारी के रूप में सम्मानित किया जाएगा।
राजा की अन्य बेटियाँ भी सुहानी की समझदारी और प्रेम को देखकर आश्चर्यचकित रह गईं। उन्होंने सुहानी को गले लगाया और कहा,
“हमने सोचा था कि हम पिताजी से सबसे अधिक प्रेम करती हैं, लेकिन वास्तव में तुमने यह साबित कर दिया कि सच्चा प्रेम दिखावे में नहीं, बल्कि गहराई में होता है।”
पूरे राज्य में सुहानी की बुद्धिमत्ता की सराहना की गई। राजा विक्रम सिंह ने यह सुनिश्चित किया कि भविष्य में वह कभी भी बाहरी दिखावे के बजाय असली मूल्यों को पहचाने।(राजा की 7 बेटियों की कहानी)
मूल संदेश:
✔ सच्चा प्रेम दिखावे में नहीं, बल्कि गहराई में होता है।
✔ कभी-कभी साधारण चीजें भी जीवन में अनमोल होती हैं।
✔ बुद्धिमत्ता और प्रेम का सही मूल्य समय आने पर ही समझ में आता है।
✔ व्यक्ति को दूसरों की भावनाओं और शब्दों का सम्मान करना चाहिए।
कहानी का अंत, लेकिन सीखने की कोई सीमा नहीं!
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