Lomdi Aur Saras Ki Kahani भाग 1: लोमड़ी की चालाकी और सारस का अपमान
Lomdi Aur Saras Ki Kahani-एक बार की बात है, एक घना और हरा-भरा जंगल था, जहाँ तमाम तरह के जानवर मिलजुलकर रहते थे। उसी जंगल में एक बहुत चालाक लोमड़ी और एक सरल स्वभाव का सारस भी रहते थे। लोमड़ी अपनी होशियारी और चालाकी के लिए पूरे जंगल में प्रसिद्ध थी। दूसरी ओर, सारस अपनी सरलता, मासूमियत और शांत स्वभाव के लिए जाना जाता था। दोनों जानवर एक-दूसरे के अच्छे परिचित थे, लेकिन उनके स्वभावों में जमीन-आसमान का अंतर था।
एक दिन, लोमड़ी ने सोचा कि क्यों न सारस को अपनी चतुराई से चिढ़ाया जाए। उसे एक योजना सूझी। उसने सारस को अपने घर बुलाने का निश्चय किया और उसे भोजन पर आमंत्रित कर लिया। सारस ने भी सोचा कि लोमड़ी उसका अच्छा स्वागत करेगी और उसने खुशी-खुशी निमंत्रण स्वीकार कर लिया। उसे उम्मीद थी कि लोमड़ी के यहाँ उसे स्वादिष्ट भोजन मिलेगा और वे दोनों साथ मिलकर अच्छा समय बिताएंगे।
दिन ढलते ही सारस लोमड़ी के घर पहुँच गया। लोमड़ी ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया और बोली, “आओ सारस भाई! तुम्हारा स्वागत है। मैंने आज तुम्हारे लिए बहुत स्वादिष्ट भोजन तैयार किया है। तुम्हें बहुत पसंद आएगा।” सारस उसकी आतिथ्य देखकर खुश हुआ और भोजन के इंतजार में बैठ गया।
थोड़ी देर बाद, लोमड़ी खाने का इंतजाम करके आई। उसने सारस के सामने एक पतले, गहरे बर्तन में सूप परोसा। वह सूप बेहद खुशबूदार और स्वादिष्ट लग रहा था, लेकिन बर्तन ऐसा था कि सारस अपनी लंबी, पतली चोंच से उसे पी नहीं पा रहा था। वह चोंच से बर्तन में बार-बार डुबकी लगाता, परंतु हर बार खाली वापस आती। लोमड़ी, जो अपनी चालाकी से प्रसन्न थी, उसे देख हँसने लगी।(Lomdi Aur Saras Ki Kahani)
हेलो दोस्तो ! आपका इस वेबसाइट में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “Lomdi Aur Saras Ki Kahani"| Animal Story | हिंदी कहानी यह एक Animal Story है। अगर आपको Animal Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
“क्या हुआ, सारस भाई?” लोमड़ी हंसते हुए बोली, “क्या तुम्हें सूप पसंद नहीं आया? तुम तो खा ही नहीं रहे!” सारस ने उसकी हँसी और ताने को समझा, लेकिन उसने अपनी शांति और धैर्य बनाए रखा। उसे अपमानित महसूस हुआ, मगर वह किसी तरह अपनी भावनाओं को काबू में रखता रहा। उसकी आँखों में हल्की सी उदासी छा गई, लेकिन उसने कुछ भी कहने के बजाय बस धीरे से मुस्कुराया।(Lomdi Aur Saras Ki Kahani)
लोमड़ी ने फिर से कहा, “अरे, खाओ-खाओ! मैंने खास तुम्हारे लिए ये सूप बनाया है।” पर अंदर ही अंदर वह सारस को तंग करने का आनंद उठा रही थी। सारस ने अपनी भावनाओं को काबू में रखा, और बिना कुछ कहे धीरे से मुस्कुरा दिया।
सारस ने अपने लंबे पंखों को समेटा, एक बार फिर से कोशिश की, लेकिन हर बार वही नतीजा था। आखिरकार, उसने सोचा कि अब और कोशिश करना बेकार है। वह अपमान के बावजूद शालीनता से उठ खड़ा हुआ और लोमड़ी से विदा लेने लगा। “धन्यवाद, लोमड़ी बहन। तुम्हारा आतिथ्य सराहनीय है।”
सारस ने अपने दर्द को छुपाते हुए यह बात कही और वापस अपने घर की ओर चल दिया। उसकी चुप्पी ने लोमड़ी को थोड़ा असमंजस में डाल दिया, लेकिन उसने फिर भी अपनी जीत समझी और मन ही मन खुश होती रही कि उसने सारस को चतुराई से मात दी। वह अपनी ही चालाकी पर गर्व महसूस कर रही थी।
सारस ने अपमान तो सह लिया, मगर वह भीतर से आहत हो गया था। उसने ठान लिया कि इस अपमान का बदला वह अपने तरीके से लेगा, लेकिन बिना किसी दुश्मनी या गुस्से के। वह चालाक लोमड़ी को एक ऐसा पाठ पढ़ाना चाहता था जो उसे जीवन भर याद रहे, परंतु सारस का तरीका उसके स्वभाव के अनुकूल था—वह शांतिपूर्ण और सौम्य था। उसने योजना बनाई कि लोमड़ी को उसकी ही तरह एक सीख दी जाए, मगर बहुत ही विनम्र और संजीदा तरीके से, ताकि उसे एहसास हो कि दूसरों का मजाक उड़ाना कितना अनुचित हो सकता है।
कुछ दिनों बाद, सारस ने लोमड़ी को अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया। लोमड़ी को लगा कि सारस ने उस दिन की बात को भुला दिया है और वह खुशी-खुशी उसके निमंत्रण को स्वीकार कर गई। सारस ने अपने शांत स्वभाव के अनुरूप एक योजना बनाई, जिससे लोमड़ी को उसके व्यवहार का आभास हो, लेकिन बिना किसी क्रोध के। वह लोमड़ी को उसी तरह एक सबक सिखाना चाहता था, जैसा कि उसने उसके साथ किया था, लेकिन बिना अपमानित किए।(Lomdi Aur Saras Ki Kahani)
Lomdi Aur Saras Ki Kahani भाग 2: सारस की बुद्धिमत्ता और लोमड़ी की सजा
पिछले हिस्से में हमने देखा कि किस प्रकार चालाक लोमड़ी ने अपने स्वभाव के अनुरूप मासूम सारस का अपमान किया था। सारस अपनी सरलता और शांति के लिए जाना जाता था, लेकिन अपमान के बाद उसने एक निर्णय लिया। वह यह तय कर चुका था कि वह लोमड़ी को उसकी गलती का एहसास कराएगा, परंतु अपने ही तरीके से, जिसमें ना तो अपमान होगा और ना ही कोई कड़वाहट। सारस ने यह ठान लिया था कि वह लोमड़ी को इस प्रकार का पाठ पढ़ाएगा कि वह भविष्य में कभी किसी का अपमान करने की सोचे भी नहीं।
कुछ दिनों बाद सारस ने लोमड़ी को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित किया। उसने बहुत विनम्रता से कहा, “लोमड़ी बहन, तुमने मुझे उस दिन इतने प्यार से बुलाया था, अब मेरी बारी है। मैं भी तुम्हारे लिए कुछ खास पकवान बनाना चाहता हूँ। तुम्हें मेरे घर आकर अवश्य खाना चाहिए।”
लोमड़ी, जिसे यह लगा कि सारस ने पिछली घटना को भुला दिया है, खुशी-खुशी उसके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। उसने सोचा, “सारस वाकई बहुत भोला है, वह मेरे साथ जो हुआ, उसे शायद भूल गया है। अब मैं भी उसके घर जाकर स्वादिष्ट भोजन का आनंद उठाऊँगी।”
नियत दिन पर लोमड़ी उत्साह से सारस के घर पहुँची। सारस ने उसका स्वागत बहुत आदर के साथ किया। उसने लोमड़ी के लिए एक विशेष भोजन तैयार किया था। लेकिन इस बार सारस ने अपने ही अंदाज में लोमड़ी को एक सबक सिखाने का मन बना लिया था।
सारस ने लोमड़ी के सामने खाना परोसा। यह एक बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन था, जिसकी सुगंध से ही लोमड़ी का मुँह पानी से भर गया। लोमड़ी ने बड़े उत्साह से खाने के लिए बर्तन की ओर देखा। लेकिन जैसे ही उसने खाने की कोशिश की, वह दंग रह गई। सारस ने इस बार खाना एक लंबे और पतले गर्दन वाले सुराही जैसे बर्तन में रखा था। लोमड़ी को इस बात का बिलकुल एहसास नहीं था कि यह बर्तन उसके लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
लोमड़ी ने अपनी छोटी चौंच से बार-बार कोशिश की, लेकिन वह उस लंबे बर्तन में से भोजन निकाल पाने में असमर्थ रही। उसे एहसास हो रहा था कि सारस ने जान-बूझकर ऐसा किया है। उसकी चालाकी और होशियारी अब काम नहीं आ रही थी। वह भूखी थी, लेकिन कुछ खा नहीं पा रही थी। वह इधर-उधर बर्तन के चारों ओर घूमती रही, लेकिन हर बार असफल रही।(Lomdi Aur Saras Ki Kahani)
सारस, जो अपनी बुद्धिमानी के लिए जाना जाता था, मुस्कुरा कर लोमड़ी की तरफ देखने लगा। उसने लोमड़ी की मुश्किलें देख कर धीरे से कहा, “क्या हुआ, लोमड़ी बहन? तुम्हें खाना पसंद नहीं आया? तुम तो खा ही नहीं रही!” यह वही शब्द थे जो कुछ दिनों पहले लोमड़ी ने सारस से कहे थे। परंतु इस बार लोमड़ी के पास कोई जवाब नहीं था। वह बस नजरें नीची करके खड़ी रही, क्योंकि उसे अब अपनी गलती का एहसास हो चुका था।(Lomdi Aur Saras Ki Kahani)
सारस ने फिर हँसते हुए कहा, “क्या तुम समझ रही हो, लोमड़ी? जैसा तुमने मेरे साथ किया, वैसा ही आज तुम्हारे साथ हो रहा है। उस दिन तुमने मुझे गहरे बर्तन में सूप दिया था, जिसे मैं अपनी चोंच से नहीं पी सका था। आज मैंने भी तुम्हारे लिए ऐसा ही किया है, ताकि तुम्हें पता चल सके कि किसी को अपमानित करने का कैसा अनुभव होता है।”(Lomdi Aur Saras Ki Kahani)
अब लोमड़ी को अपनी चालाकी और मजाक का अंजाम पूरी तरह से समझ में आ गया था। उसे अपनी गलती का गहरा एहसास हुआ। उसने सोचा कि उसने अपनी चालाकी के चलते दूसरों का मजाक उड़ाया, लेकिन अब उसे उसी चालाकी की सजा मिली है। लोमड़ी की आँखों में ग्लानि थी। उसे अब पूरी तरह से समझ में आ गया था कि मजाक में भी किसी का अपमान करना कितना गलत होता है।, क्योंकि जो हम दूसरों के साथ करते हैं, वही कभी न कभी हमारे साथ भी हो सकता है।(Lomdi Aur Saras Ki Kahani)
लोमड़ी ने तुरंत सारस से माफी मांगी। उसने कहा, “सारस भाई, मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। मैंने उस दिन तुम्हारे साथ बहुत गलत किया था। मैं केवल अपनी चालाकी दिखाना चाहती थी, लेकिन मैं यह नहीं समझ सकी कि इससे तुम्हें कितनी तकलीफ हुई होगी। आज तुमने मुझे सही तरीके से सबक सिखाया है, और मैं वादा करती हूँ कि अब कभी किसी का अपमान नहीं करूँगी।”
सारस, जो स्वभाव से बहुत ही दयालु और समझदार था, ने लोमड़ी की माफी को स्वीकार कर लिया। उसने कहा, “लोमड़ी बहन, हमें हमेशा दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। जो हम दूसरों के साथ करते हैं, वही हमें लौटकर मिलता है। अगर हम दूसरों को चोट पहुँचाते हैं, तो हमें भी कभी न कभी उसकी सजा मिलती है। जीवन में हमें हमेशा दयालु और विनम्र रहना चाहिए।”
इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे को समझा और लोमड़ी ने वाकई में अपनी चालाकी को छोड़कर अपने स्वभाव में सुधार लाने की कोशिश की। अब वह सारस के प्रति और जंगल के अन्य जानवरों के प्रति भी अधिक सहानुभूति और सम्मान का व्यवहार करने लगी। धीरे-धीरे, जंगल में लोमड़ी और सारस की दोस्ती फिर से गहरी हो गई, लेकिन इस बार वह दोस्ती सच्चे सम्मान और समझदारी पर आधारित थी।(END Lomdi Aur Saras Ki Kahani)
Lomdi Aur Saras Ki Kahani से सीख (Moral of the Story):
इस Lomdi Aur Saras Ki Kahani से हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी का अपमान करना या उसे नीचा दिखाना कभी सही नहीं होता। यदि हम दूसरों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं, तो हमें भी कभी न कभी उसी बुरे व्यवहार का सामना करना पड़ता है। हमें हमेशा विनम्रता, दया और सहानुभूति के साथ दूसरों के साथ व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि हमारे कर्म हमें लौटकर अवश्य मिलते हैं। जो व्यक्ति दूसरों के साथ अच्छा करता है, उसे जीवन में भी अच्छाई प्राप्त होती है।
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