Sahansheelta Ka Jaadu भाग 1: सहनशीलता की परीक्षा
यह Sahansheelta Ka Jaadu कहानी उस समय की है जब गाँवों में साधु-संतों का गहरा प्रभाव हुआ करता था। एक छोटे से गाँव के हृदय में स्वामी दयानंद का आश्रम स्थित था। स्वामी जी अपने सरल जीवन, गहन ज्ञान, और अद्वितीय सहनशीलता के लिए विख्यात थे। वे हमेशा एक सच्चे गुरु के रूप में गांववासियों के बीच पूजनीय थे। उन्होंने अपने जीवन को मानवता की सेवा और सत्य की खोज में समर्पित किया था। स्वामी जी की सादगी, प्रेम और सहनशीलता ने गाँव के हर व्यक्ति के दिल में उनके लिए गहरी श्रद्धा उत्पन्न कर दी थी।
स्वामी दयानंद के पास कोई सांसारिक संपत्ति नहीं थी, उनके पास केवल ज्ञान की सम्पदा थी जिसे वे सबके साथ बांटते थे। उनका एक ही उद्देश्य था – लोगों के दिलों में सच्चाई और धर्म का बीज बोना। उनके लिए जीवन का सबसे बड़ा सिद्धांत था – सहनशीलता। वे मानते थे कि सच्ची सहनशीलता ही मनुष्य के अंदर की बुराई और बाहर की कठिनाइयों को समाप्त कर सकती है।
गाँव के लोग स्वामी जी के प्रवचनों और उनकी शिक्षाओं से प्रभावित थे। उनका जीवन अनुकरणीय था। वे हमेशा मुस्कुराते रहते, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों। गाँव के लोग उन्हें अपने गुरु के रूप में मानते और उनके जीवन के मार्गदर्शन से लाभान्वित होते थे। लेकिन, हर कहानी में एक ऐसा मोड़ आता है जो उस पात्र की असल परीक्षा लेता है। (Sahansheelta Ka Jaadu)
गाँव में एक अन्य साधु भी था, जो स्वामी दयानंद के विपरीत स्वभाव का था। वह स्वभाव से अहंकारी और कड़वा था। उसे स्वामी जी की प्रसिद्धि से ईर्ष्या थी और वह सोचता था कि गाँव के लोग उसे अनदेखा करके केवल स्वामी जी का ही आदर क्यों करते हैं। यह ईर्ष्या धीरे-धीरे क्रोध में बदल गई, और उसने स्वामी दयानंद को अपमानित करने का निश्चय किया।
हर दिन वह साधु स्वामी जी के आश्रम के सामने आता और उन्हें अपशब्द कहता। वह उनके ज्ञान, चरित्र और जीवनशैली पर प्रश्नचिन्ह उठाता। “तुम्हारी यह सादगी दिखावा है,” वह चिल्लाता। “तुम्हारी सहनशीलता झूठ है। तुम्हारे ज्ञान में कोई वास्तविकता नहीं है।” साधु का क्रोध दिन-ब-दिन तीव्र होता गया, और उसके शब्दों में कड़वाहट की सीमा नहीं रही। वह स्वामी जी के प्रति जितना ज्यादा नफरत दिखाता, स्वामी जी उतने ही शांत रहते।
स्वामी दयानंद ने साधु के कटु शब्दों का कभी कोई उत्तर नहीं दिया। वे मानते थे कि सहनशीलता ही सच्ची शक्ति है। वे सिर्फ मुस्कुराते और अपने दैनिक कामों में लगे रहते। उनकी आंखों में कोई क्रोध या दुःख नहीं था, बल्कि एक अजीब सी शांति थी जो साधु को और भी क्रोधित कर देती। गाँव के लोग इस अपमान को देखकर दुखी होते और आश्चर्य करते कि स्वामी जी इतना अपमान कैसे सह लेते हैं।
गाँव के कुछ प्रमुख भक्तों ने स्वामी जी से कहा, ‘स्वामी जी, अब यह अपमान सहा नहीं जाता। कुछ कीजिए। वह साधु आपके साथ अन्याय कर रहा है। कृपया कुछ कीजिए, उसे सबक सिखाइए। हमसे उसकी यह धृष्टता देखी नहीं जाती।”
स्वामी दयानंद ने शांत स्वर में उत्तर दिया, “मेरे प्रिय, क्रोध का उत्तर क्रोध से देने से कोई लाभ नहीं होता। अगर मैं उसके बुरे शब्दों का उत्तर दूं, तो क्या फर्क रह जाएगा उसमें और मुझमें? हमें सहनशीलता की शक्ति पर विश्वास रखना चाहिए। वह स्वयं ही सीधा हो जाएगा।”
भक्तों ने स्वामी जी की इस बात पर गहन विचार किया, परंतु उनकी चिंता कम नहीं हुई। उन्हें लगता था कि स्वामी जी की सहनशीलता उस साधु को और अधिक दुस्साहसी बना रही है। गाँव के लोगों में भी यह चर्चा शुरू हो गई कि स्वामी जी आखिर कब तक इस अपमान को सहन करेंगे।
दिन बीतते गए और साधु का दुर्व्यवहार बढ़ता गया। वह अब न केवल अपशब्द कहता बल्कि स्वामी जी के आश्रम में पत्थर भी फेंकने लगा। उसकी हरकतें इतनी बढ़ गई थीं कि गाँव वाले भी असहज हो गए। अब सबकी नज़रे स्वामी दयानंद पर थीं। क्या अब भी वे उसी शांत भाव से सब कुछ सहन करेंगे, या अब समय आ गया था कि वे कुछ कठोर कदम उठाएं?
लेकिन स्वामी जी की सहनशीलता अडिग थी। उनका विश्वास था कि समय के साथ हर व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अवश्य मिलता है, और सच्ची सहनशीलता में बुराई को जीतने की शक्ति होती है।
एक दिन, जब साधु ने फिर से स्वामी जी के सामने आकर उन्हें अपमानित करना शुरू किया, गाँव के कुछ लोग उसे रोकने के लिए आगे बढ़े। लेकिन स्वामी दयानंद ने उन्हें रोका और कहा, “रुकिए, उसे बोलने दीजिए। उसके क्रोध में उसका अपना दुःख छिपा है। हम उसकी सहायता करेंगे, न कि उसे और दुःखी बनाएंगे।”
स्वामी जी की यह सहनशीलता देखकर गाँववाले विस्मित रह गए। वे समझ नहीं पा रहे थे कि कैसे कोई व्यक्ति इतना शांत और सहनशील हो सकता है, जबकि उसका प्रतिदिन अपमान हो रहा है।
फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ, जिसने गाँव वालों की सोच ही बदल दी। उस अचानक साधु की तबियत बिगड़ने लगी, जैसे उसकी बुरी आदतों का भार अब उसके शरीर पर असर डालने लगा हो। उसकी स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ने लगी। वह अब चलने-फिरने में असमर्थ था। तब वह यह समझ गया कि उसकी बुरी आदतें और स्वामी जी के प्रति उसकी नफरत ने उसे अकेला और कमजोर बना दिया है। उसे अपनी गलतियों का अहसास होने लगा, लेकिन अब उसके पास साहस नहीं बचा था कि वह स्वामी दयानंद से माफी मांगे।
स्वामी दयानंद को जब यह खबर मिली, तो वे तुरंत उस साधु के पास गए। उन्होंने उसकी सहायता की, उसके इलाज का प्रबंध किया और उसे सांत्वना दी। साधु ने अपनी आंखों में आँसू लिए हुए कहा, “स्वामी जी, मैं आपके साथ जो कुछ करता था, वह मेरी नासमझी थी। मैंने आपको बहुत अपमानित किया, और फिर भी आपने मुझे माफ कर दिया। मुझे क्षमा कर दें।”
स्वामी दयानंद मुस्कुराए और बोले, “मैंने तो तुम्हें पहले ही माफ कर दिया था। क्रोध और नफरत किसी को भी सुख नहीं देती। हमें केवल प्रेम और सहनशीलता का ही मार्ग अपनाना चाहिए। यही जीवन का सत्य है।”
यह घटना गाँव के लोगों के लिए सहनशीलता की सबसे बड़ी शिक्षा बन गई। सभी ने समझा कि सच्ची शक्ति सहनशीलता में है, और बुराई का उत्तर बुराई से नहीं, बल्कि प्रेम और क्षमा से देना चाहिए। स्वामी दयानंद का जीवन सबके लिए प्रेरणा बन गया, और उस दिन से गाँव में शांति और सद्भाव का वातावरण फैल गया। (Sahansheelta Ka Jaadu)
Sahansheelta Ka Jaadu भाग 2: सहनशीलता का परिणाम
साधु की तबियत खराब होने के बाद, स्वामी दयानंद ने उसकी देखभाल शुरू कर दी थी। वे प्रतिदिन उसके पास जाकर उसकी तबियत के बारे में पूछते और उसे स्वास्थ्य लाभ के लिए हर संभव सहायता प्रदान करते। उनके सेवाभाव और निरंतर दया को देखकर गाँव के लोग आश्चर्यचकित थे। स्वामी जी ने कभी उस साधु के अपमानों और दुर्व्यवहार की कोई शिकायत नहीं की थी। उनके लिए उस साधु का कल्याण ही सबसे महत्वपूर्ण था।
हेलो दोस्तो ! आपका इस वेबसाइट में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “Sahansheelta Ka Jaadu"| Hindi Kahani | हिंदी कहानी | Hindi Story" यह एक Motivational Story है। अगर आपको Hindi Kahani, Short Story in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
एक दिन स्वामी दयानंद ने अपने एक शिष्य को बुलाया और कहा, “साधु के लिए कुछ ताजे फल भेजो। उसे अच्छे पोषण की जरूरत है ताकि वह शीघ्र स्वस्थ हो सके।”
शिष्य थोड़ा अचरज में था, क्योंकि वह जानता था कि साधु ने स्वामी जी के साथ कितना बुरा व्यवहार किया था। फिर भी, स्वामी जी का आदेश मानते हुए वह ताजे फल लेकर साधु के निवास पर पहुंचा। उसने साधु को फल देते हुए कहा, “स्वामी दयानंद ने ये फल आपके स्वास्थ्य लाभ के लिए भेजे हैं।”
साधु ने पहले फलों को लेने से मना कर दिया, उसकी आँखों में पश्चाताप और संकोच था। उसके मन में एक द्वंद्व चल रहा था—जिस व्यक्ति के साथ उसने इतने बुरे व्यवहार किए थे, वही अब उसकी सहायता कर रहा था। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि स्वामी जी उसे अब भी बिना किसी द्वेष के भलाई कर रहे हैं। उसने शिष्य से कहा, “मैं इन फलों को नहीं ले सकता। मैं स्वामी दयानंद के साथ बहुत गलत कर चुका हूँ। उन्होंने मेरे अपमान का कभी कोई उत्तर नहीं दिया, और अब वे मेरे लिए फल भेज रहे हैं? यह मेरी अंतरात्मा को चुभता है।”
शिष्य ने साधु से कहा, “स्वामी जी ने मुझे आपके लिए एक संदेश भी दिया है। वे कहते हैं कि कोई भी बुरा व्यक्ति नहीं होता, बस कभी-कभी हम अपने क्रोध और अहंकार के कारण भटक जाते हैं। लेकिन हर व्यक्ति के अंदर अच्छाई छिपी होती है, और उसे सहनशीलता और प्रेम से जाग्रत किया जा सकता है। वे आपको अपना शत्रु नहीं, बल्कि एक भटके हुए मित्र मानते हैं। वे चाहते हैं कि आप जल्दी स्वस्थ हो जाएं।”
यह सुनकर साधु का दिल द्रवित हो गया। उसे महसूस हुआ कि वह कितनी बड़ी भूल कर चुका है। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, और उसका ह्रदय अपराधबोध से भर गया। वह सोचने लगा, “स्वामी दयानंद तो सच्चे संत हैं। मैंने उनके साथ कितनी बुरी तरह पेश आया, फिर भी उन्होंने कभी मेरी बुराई का जवाब नहीं दिया। और अब वे मेरी मदद कर रहे हैं। आखिर मैं किस तरह का जीवन जी रहा था?” (Sahansheelta Ka Jaadu)
अगले दिन, साधु ने निर्णय लिया कि वह स्वामी दयानंद से जाकर मिलकर अपने सभी गलतियों के लिए क्षमा मांगेगा। वह अपने मन का बोझ हल्का करना चाहता था, और स्वामी जी के प्रति अपने अपराध के लिए पश्चाताप करना चाहता था।
साधु ने हिम्मत जुटाई और आश्रम की ओर चल पड़ा। वह धीरे-धीरे स्वामी जी के पास पहुंचा, जो अपने शिष्यों के साथ एक पेड़ के नीचे बैठकर उन्हें ज्ञान का पाठ पढ़ा रहे थे। जैसे ही साधु ने स्वामी जी को देखा, उसकी आँखों में आँसू भर आए। वह बिना किसी हिचक के स्वामी दयानंद के चरणों में गिर पड़ा और रोते हुए कहा, “स्वामी जी, मुझे क्षमा कर दीजिए। मैंने आपके साथ बहुत अन्याय किया। आपने मेरे साथ केवल सहनशीलता और प्रेम दिखाया, जबकि मैं आपको अपमानित करता रहा। मैं इस क्षमा का पात्र नहीं हूँ, फिर भी आप मेरे लिए इतना कर रहे हैं।”
स्वामी दयानंद ने साधु को उठाते हुए कहा, “तुमने जो कुछ भी किया, वह तुम्हारे क्रोध और अहंकार के कारण था। लेकिन तुम आज अपने कर्मों का पश्चाताप कर रहे हो, और यही सबसे महत्वपूर्ण बात है। यह सहनशीलता का ही प्रभाव है कि तुमने अपनी गलतियों को समझा। हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि जीवन में क्रोध और द्वेष से कुछ भी अच्छा नहीं होता। सच्चा तप और सच्चा बल सहनशीलता में निहित है। सहनशीलता ही वह गुण है जो बुराई को अच्छाई में बदलने की शक्ति रखता है।” (Sahansheelta Ka Jaadu)
साधु के हृदय में स्वामी जी के शब्दों ने गहरा प्रभाव डाला। उसने महसूस किया कि उसकी पूरी जीवनशैली गलत दिशा में जा रही थी। उसने स्वामी जी से विनम्रता पूर्वक कहा, “स्वामी जी, आपने मुझे आज सच्चा ज्ञान दिया है। अब मैं जानता हूँ कि सच्ची शक्ति क्रोध में नहीं, बल्कि सहनशीलता में है। आपसे मैंने यह महान शिक्षा प्राप्त की है कि बुराई का उत्तर बुराई से नहीं, बल्कि भलाई से देना चाहिए।” ((Sahansheelta Ka Jaadu))
स्वामी दयानंद ने मुस्कुराते हुए साधु को आशीर्वाद दिया और कहा, “हर व्यक्ति जीवन में गलती करता है, लेकिन जो अपनी गलती को स्वीकार कर उसे सुधारने का प्रयास करता है, वही सच्चा साधक होता है। जीवन में हम सबको यह सीखने की आवश्यकता है कि सहनशीलता और प्रेम से ही संसार में शांति और समृद्धि लाई जा सकती है।”
इसके बाद साधु ने अपना पूरा जीवन स्वामी दयानंद की शिक्षाओं का पालन करते हुए बिताने का निश्चय किया। उसने क्रोध, ईर्ष्या और अहंकार का त्याग कर दिया और जीवन के हर मोड़ पर सहनशीलता, प्रेम और करुणा को अपनाया। गाँव के लोग इस बदलाव को देखकर आश्चर्यचकित थे। जो साधु कभी स्वामी जी को अपमानित करता था, वही अब उनका सबसे बड़ा भक्त बन गया था।
यह घटना गाँव के हर व्यक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा थी। स्वामी दयानंद की सहनशीलता ने एक व्यक्ति का जीवन बदल दिया, और साथ ही सभी गाँववासियों के दिलों में एक नई सोच का बीज बोया। अब गाँव में लोग एक-दूसरे के प्रति अधिक सहनशील, प्रेममयी और दयालु हो गए थे। स्वामी जी की यह शिक्षा केवल साधु के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए थी, जो जीवन में कठिनाइयों और बुराई से सामना करता है।
Sahansheelta Ka Jaadu कहानी का अंत
सहनशीलता एक ऐसी शक्ति है, जो बिना किसी शोर-शराबे के सबसे बड़ी बुराई को भी अच्छाई में बदलने की क्षमता रखती है। यह केवल किसी व्यक्ति को क्षमा करना नहीं है, बल्कि उसे सही मार्ग पर लाना भी है। स्वामी दयानंद का जीवन इसका सबसे बड़ा उदाहरण था। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा सहनशीलता है, और जो इस परीक्षा को पास करता है, वह जीवन की हर चुनौती का सामना कर सकता है।
Sahansheelta Ka Jaadu कहानी से शिक्षा:
इस Sahansheelta Ka Jaadu कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सहनशीलता एक महान गुण है, जो न केवल हमारे भीतर शांति लाता है, बल्कि दूसरों के जीवन को भी बदल सकता है। सहनशीलता क्रोध, नफरत और बुराई का उत्तर नहीं देती, बल्कि उन्हें प्रेम और करुणा में बदलने की शक्ति रखती है। जो व्यक्ति सहनशील होता है, वह जीवन में सच्ची सफलता और शांति प्राप्त करता है।
सहनशीलता का जादू यह है कि वह बुरे से बुरे व्यक्ति को भी बदल सकता है और उसके दिल में अच्छाई का संचार कर सकता है। जीवन में, हमें दूसरों के प्रति दया, करुणा और सहनशीलता दिखानी चाहिए, क्योंकि यही सच्ची मानवता है।”
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