परोपकारी राजा की कहानी भाग 1: परोपकारी राजा और प्रजा का सुखी जीवन
परोपकारी राजा की कहानी-एक समय की बात है, एक छोटे से राज्य में एक परोपकारी राजा रहता था। यह राज्य सुंदर पहाड़ियों और हरे-भरे खेतों से घिरा हुआ था। राजा का नाम राजेंद्र था, जो अपनी दयालुता और न्यायप्रियता के लिए अधिक प्रसिद्ध था, न कि केवल अपने शारीरिक बल के लिए। राजेंद्र हमेशा अपनी प्रजा की भलाई के बारे में सोचता था और हर संभव प्रयास करता था कि उसके राज्य में कोई भी व्यक्ति भूखा या दुखी न रहे। उसका विश्वास था कि एक राजा का सर्वोत्तम कर्तव्य अपनी प्रजा की भलाई सुनिश्चित करना है।
राजेंद्र अपने दरबारियों और सैनिकों को आदेश देता कि वे हर गाँव और कस्बे का दौरा करें और यह सुनिश्चित करें कि सभी लोग खुश और संतुष्ट हैं। वह अक्सर अपने वफादार मंत्री और मित्र, विभूषण, के साथ गाँवों का दौरा करता। वह गाँव के लोगों से मिलता, उनकी समस्याएँ सुनता, और उनके समाधान के लिए तुरंत कदम उठाता।
राजा ने राज्य में बड़े-बड़े कुएँ, तालाब, और अनाज के गोदाम बनवाए थे, ताकि सूखे या अकाल के समय किसी को भी भोजन की कमी न हो। इन गोदामों में अनाज भरकर रखा जाता था, जिससे कोई भी गरीब व्यक्ति भूखा न रहे। राजेंद्र की इस पहल के कारण उसके राज्य में हमेशा खुशहाली का माहौल बना रहता था। लोग राजा की तारीफ करते नहीं थकते थे और उसे अपना उद्धारक मानते थे।(परोपकारी राजा की कहानी)
एक दिन, राजा अपने दरबार में एक गरीब किसान को देखता है, जो अपनी फसल के नुकसान के कारण कर्ज में डूबा हुआ था। किसान का नाम रामू था, और उसकी आँखों में चिंता और डर की झलक थी। उसने राजा से कहा, “महाराज, मैंने अपनी फसल में बहुत मेहनत की थी, लेकिन अचानक आई बाढ़ ने सब कुछ तबाह कर दिया। अब मेरे पास अपने परिवार का पेट भरने के लिए भी कुछ नहीं बचा।”

हेलो दोस्तो ! आपका इस वेबसाइट में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “परोपकारी राजा की कहानी“|Paropkari Raja Ki Kahani| हिंदी कहानी | Hindi Story यह एक Panchatantra Story in Hindi है। अगर आपको Panchatantra Story in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
राजा उसकी परेशानी सुनकर दुखी हो गया। उसने तुरंत उसकी मदद करने का आदेश दिया। “रामू, तुम चिंता मत करो। तुम्हारा सारा कर्ज माफ कर दिया जाएगा। तुम फिर से अपनी खेती शुरू करो और हम सब तुम्हारे साथ हैं।” किसान खुशी-खुशी राजा को धन्यवाद देता है। यह सुनकर दरबार में सभी ने राजा की उदारता की सराहना की। राजा की यह उदारता पूरे राज्य में फैल गई।(परोपकारी राजा की कहानी)
राजा की इस परोपकारिता की प्रसिद्धि सुनकर एक दिन, पड़ोसी राज्य के राजा, बल्देव, को जलन होती है। बल्देव एक स्वार्थी और निर्दयी राजा था, जो अपनी शक्ति और समृद्धि के लिए कुख्यात था। उसे चिंता होने लगती है कि यदि इस परोपकारी राजा की प्रतिष्ठा इसी तरह बढ़ती रही, तो उसके राज्य के लोग भी उससे असंतुष्ट हो सकते हैं।
इससे उसे अपनी शक्ति और सम्राज्य पर खतरा महसूस होने लगा। उसने तय किया कि वह परोपकारी राजा की परीक्षा लेगा। उसने एक चालाक योजना बनाई। बल्देव ने अपने राजदूत को भेजा, ताकि वह राजेंद्र को एक प्रस्ताव दे सके।(परोपकारी राजा की कहानी)
राजदूत ने राजा राजेंद्र के सामने प्रस्तुत होकर कहा, “महाराज, मैं बल्देव का राजदूत हूँ। मेरे राजा ने आपके सामने एक प्रस्ताव रखा है। यदि आप हमारे राज्य के साथ एक व्यापारिक संधि करते हैं, तो हम आपके राज्य के सभी अनाज की आपूर्ति करेंगे। इसके बदले में, हमें आपके राज्य की प्राकृतिक संपदा की कुछ हिस्सेदारी चाहिए।”
राजेंद्र ने राजदूत की बात सुनकर उसे ध्यान से समझा। उसने कहा, “हमारी जमीन की उपज हमारे लोगों की मेहनत का फल है। हम इसे किसी के साथ साझा नहीं कर सकते। हमारी प्राथमिकता हमारी प्रजा का भला करना है।”
राजदूत की यह सुनकर मुस्कान छुपी हुई थी, लेकिन वह जानता था कि बल्देव की योजना कुछ और ही है। बल्देव चाहता था कि राजेंद्र इस प्रस्ताव को ठुकरा दे ताकि वह उसे कमजोर दिखा सके।(परोपकारी राजा की कहानी)
राजा राजेंद्र ने तुरंत अपने मंत्रियों के साथ विचार-विमर्श किया। वह जानता था कि बल्देव किसी भी स्थिति में उसकी परीक्षा लेने की कोशिश करेगा। राजा ने अपने मंत्री विभूषण से कहा, “हमें इस स्थिति का सावधानी से सामना करना होगा। बल्देव की योजना में हम नहीं फँस सकते। हमें अपने राज्य की भलाई को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी है।”
विभूषण ने सहमति जताई और कहा, “महाराज, हमें अपने राज्य में खुशहाली बनाए रखने के लिए एक मजबूत योजना बनानी होगी।”
राजेंद्र ने अपने दरबार में एक बैठक बुलाई और सभी गाँवों के प्रमुखों को आमंत्रित किया। वह समझाना चाहता था कि उन्हें अपने गाँवों में एकजुट रहकर काम करना होगा ताकि वे किसी भी बाहरी खतरे का सामना कर सकें। राजा ने गाँव के प्रमुखों को समझाया कि एकता में शक्ति है, और एकजुट होकर ही वे हर समस्या का सामना कर सकते हैं।
गाँवों के प्रमुखों ने राजा की बातें सुनकर उसे आश्वासन दिया कि वे उसकी बातों का पालन करेंगे और राज्य के लिए हर संभव मदद करेंगे। प्रजा ने राजा के प्रति अपनी वफादारी और समर्थन व्यक्त किया। इस बात से राजा का मनोबल और बढ़ गया।
राजा ने फिर से अपने दरबार में बैठकर योजना बनाई। उन्होंने एक कार्यक्रम रखा, जिसमें राज्य के सभी किसानों और व्यापारियों को बुलाया गया। राजा ने उन्हें बताया कि हमें किसी भी स्थिति में एकजुट रहना है। बल्देव की चालों को हमें समझना होगा और अपने राज्य की रक्षा करनी होगी।
राजा की इस रणनीति ने लोगों में एक नई ऊर्जा भर दी। सभी ने यह प्रण लिया कि वे अपने राज्य की रक्षा के लिए तैयार रहेंगे और किसी भी संकट का सामना करने के लिए एकजुट रहेंगे।
राजा राजेंद्र की बुद्धिमत्ता और प्रजा की एकता ने राज्य में एक नई चेतना पैदा की। अब, जब बल्देव अपनी योजना को अंजाम देने के लिए तैयार हो रहा था, तो राजा और उसकी प्रजा ने पहले ही एक ठोस नींव तैयार कर ली थी।(परोपकारी राजा की कहानी)
एक शाम, जब राजा राजेंद्र अपने दरबार में बैठा था, उसे एक संदेष मिला। यह संदेश बल्देव के एक व्यक्ति द्वारा भेजा गया था। उसने लिखा था, “यदि तुमने हमारी संधि को नहीं माना, तो तुम अपनी प्रजा के लिए बहुत बड़ा खतरा मोल ले रहे हो। हम तुम्हारे राज्य पर आक्रमण करेंगे।”(परोपकारी राजा की कहानी)
राजेंद्र ने यह संदेश पढ़ा और उसका चेहरा गंभीर हो गया। उसने अपने मंत्रियों की ओर देखा और कहा, “अब समय आ गया है कि हमें बल्देव को उसकी जगह दिखानी होगी। हम अपने राज्य की रक्षा करेंगे। हमें अपनी प्रजा पर गर्व है और हम किसी भी परिस्थिति में उनके लिए लड़ेंगे।”
राजा ने तुरंत अपनी सेना को संगठित करने का आदेश दिया। उसकी आँखों में दृढ़ संकल्प था और उसकी दिल में अपने लोगों के लिए एक अटूट प्रेम।
राजेंद्र ने प्रजा के साथ मिलकर एक योजना बनाई। वे यह जानते थे कि बल्देव एक ताकतवर राजा है, लेकिन उनकी एकता और राजेंद्र की दयालुता उनके खिलाफ एक सशक्त शस्त्र बन सकती थी।(परोपकारी राजा की कहानी)
अगले दिन सुबह, जब बल्देव ने अपनी सेना के साथ राजा के राज्य की ओर बढ़ना शुरू किया, तब राजेंद्र ने अपनी प्रजा को एकत्रित किया। उसने कहा, “आज हम सब मिलकर अपने राज्य की रक्षा करेंगे। हमें किसी भी चुनौती का सामना करना है, क्योंकि हम एकजुट हैं। हमारी एकता ही हमारी शक्ति है।”
राजा की इस बात ने सभी को प्रेरित किया। प्रजा ने अपने राजा के साथ खड़े होकर एक नई ऊर्जा के साथ बल्देव के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार हो गए।(परोपकारी राजा की कहानी)
इस समय, सभी का दिल एक साथ धड़क रहा था, और एक नया अध्याय शुरू होने को था, जिसमें परोपकारी राजा ने अपनी दयालुता और अपने राज्य की सुरक्षा के लिए एक नई लड़ाई की तैयारी की थी।
परोपकारी राजा की कहानी भाग 2: राजा की परीक्षा और परोपकार की जीत
पड़ोसी राज्य का राजा बल्देव, जिसे राजेंद्र की परोपकारिता ने बहुत प्रभावित किया था, ने सोचा कि उसे इस राजा की परीक्षा लेनी चाहिए। उसने अपने कुछ सैनिकों को साधारण कपड़े पहनकर भेजा और खुद भी एक गरीब व्यापारी का भेष धारण किया। वह दरबार में गया और अपने चेहरे पर दुख का एक मुखौटा चढ़ा लिया। उसने राजा राजेंद्र के सामने जाकर कहा, “महाराज, मैं एक निर्धन व्यापारी हूँ। मैंने हाल ही में अपनी सम्पत्ति खो दी है और अब मेरे पास कुछ भी नहीं बचा। कृपया मुझे सहायता प्रदान करें, ताकि मैं अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकूँ।”
राजेंद्र ने व्यापारी की कठिनाई सुनकर उसे गहरा दुःख हुआ। उसने तुरंत अपने दरबार के मंत्रियों की ओर देखा और कहा, “हम इसे अनदेखा नहीं कर सकते; हमें सहायता प्रदान करनी चाहिए।” उसने अपनी राजकीय तिजोरी खोल दी और व्यापारी को जितनी भी मदद चाहिए, उतना सोना, अनाज और वस्त्र देने का आदेश दिया।

राजा के दरबार में मौजूद मंत्री यह देखकर चकित रह गए। उन्होंने राजा से कहा, “महाराज, यह व्यक्ति साधारण व्यापारी नहीं लगता। हमें इसे सहायता देने से पहले इसकी पहचान की जाँच करनी चाहिए।” लेकिन राजेंद्र ने उत्तर दिया, “मुझे विश्वास है कि हर व्यक्ति की कहानी उसके सामने प्रकट होती है। हमें अपनी उदारता को कभी संदेह के दायरे में नहीं लाना चाहिए।”
विभूषण, जो राजा का करीबी मित्र और सलाहकार था, उसने भी इस मामले में राजा की राय का समर्थन किया। वह जानता था कि राजा की उदारता का यह सिद्धांत ही उसके राज्य की खुशहाली का कारण है।(परोपकारी राजा की कहानी)
राजा ने व्यापारी से कहा, “तुम्हारी समस्या हमें चिंता में डालती है। तुम चिंता मत करो, हम तुम्हारी सहायता करेंगे।”
व्यापारी और उसके साथी राजा से प्राप्त मदद को लेकर जाने लगे। लेकिन जैसे ही वे दरबार से बाहर निकलने लगे, बल्देव ने अपने असली रूप में आकर कहा, “मैंने तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए यह सब किया था, लेकिन तुमने मुझे गलत साबित कर दिया।”
राजेंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा, “सच्चा राजा वही होता है, जो बिना भेदभाव और संदेह के अपनी प्रजा तथा जरूरतमंदों की सहायता करता है। तुमने मुझे परीक्षा में डाला, लेकिन मेरी दया और उदारता के सामने तुम्हारी योजना असफल रही।”
पड़ोसी राजा बल्देव इस उत्तर को सुनकर हक्का-बक्का रह गया। उसे अपने कार्यों का भान हुआ कि उसने बिना किसी उचित कारण के परोपकारी राजा की निंदा की थी। राजेंद्र ने उसे यह भी बताया कि सच्ची उदारता का अर्थ केवल अपने लाभ के लिए सहायता करना नहीं, बल्कि जरूरतमंदों की सहायता करना है, चाहे वे कितने ही गरीब या असहाय क्यों न हों।(परोपकारी राजा की कहानी)
पड़ोसी राजा बल्देव को अपनी गलती का एहसास होता है। वह अपने घमंड को त्यागकर राजा राजेंद्र से माफी माँगता है। उसने कहा, “मुझे तुमसे बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है, परोपकारी राजा। मैं वचन देता हूँ कि मैं भी अपने राज्य में इसी तरह न्याय और परोपकार का पालन करूंगा। तुमने मुझे यह सिखाया कि सच्चा राजा वही है जो अपने राज्य की प्रजा की भलाई के लिए समर्पित होता है।”(परोपकारी राजा की कहानी)
राजेंद्र ने बल्देव को क्षमा करते हुए कहा, ‘हर व्यक्ति अपनी गलतियों से सीखता है। यह सबसे महत्वपूर्ण है। तुमने आज जो किया, वह तुम्हारी विकास यात्रा का हिस्सा है। यदि तुम अपने राज्य की भलाई के लिए समर्पित हो जाओगे, तो तुम्हारा राज्य भी खुशहाल बनेगा।”
राजेंद्र ने बल्देव से कहा, “आओ, हम मिलकर एक नई शुरुआत करें। तुम अपने राज्य में जो भी बदलाव लाना चाहोगे, उसके लिए मैं तुम्हारा समर्थन करूंगा।”
इसके बाद, बल्देव ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे अपने राज्य में लौटें और वहां की समस्याओं का समाधान करें। उसने राजा राजेंद्र से मदद की भीख नहीं मांगी, बल्कि खुद अपनी मेहनत और ज्ञान से अपने राज्य की स्थिति सुधारने का प्रण लिया।
राजेंद्र और बल्देव ने एक नई साझेदारी का आरंभ किया। राजेंद्र ने बल्देव को अपने राज्य में रहने का प्रस्ताव दिया, ताकि वह उसके कार्यों को समझ सके और अपने राज्य के लिए एक नई दिशा निर्धारित कर सके।
पड़ोसी राज्य में लौटकर बल्देव ने अपने लोगों से संवाद किया। उसने उन्हें बताया कि परोपकारी राजा से उसने क्या सीखा है और कैसे उन्होंने अपने राज्य की खुशहाली के लिए कड़ी मेहनत की। बल्देव ने अपने राज्य के लोगों को यह भी बताया कि उदारता और दया की शक्ति से वे अपने जीवन को कैसे बदल सकते हैं।(परोपकारी राजा की कहानी)
राजा बल्देव ने अपने राज्य में कई सुधार किए। उसने किसानों की फसल को बचाने के लिए योजनाएँ बनाई, जरूरतमंदों की मदद की और अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे अपने राज्य के हर एक कोने में जाकर लोगों की समस्याओं को सुनें।
कुछ समय बाद, बल्देव ने अपने राज्य में सभी जरूरतमंदों के लिए भोजन और वस्त्र वितरण कार्यक्रम आयोजित किया। राजेंद्र ने भी इसमें भाग लिया और अपने लोगों के साथ मिलकर भोजन वितरित किया। इस कार्यक्रम ने दो राज्यों के बीच भाईचारे और सहयोग का नया अध्याय शुरू किया।(परोपकारी राजा की कहानी)
इस प्रकार, बल्देव और राजेंद्र ने एक नई दोस्ती का संबंध स्थापित किया, जिसने दोनों राज्यों के बीच एक नया सामंजस्य स्थापित किया। अब दोनों राजा एक-दूसरे से सीखते थे और अपने राज्यों में न्याय, दया और परोपकार को बढ़ावा देते थे।
राजेंद्र की उदारता ने न केवल उसकी प्रजा को खुशहाल बनाया, बल्कि पड़ोसी राजा बल्देव को भी सच्ची परोपकारिता का पाठ पढ़ाया। बल्देव ने यह महसूस किया कि सच्ची दया और उदारता केवल शक्तिशाली होने से नहीं, बल्कि सच्चे दिल से जरूरतमंदों की सहायता करने से आती है।(END परोपकारी राजा की कहानी)
परोपकारी राजा की कहानी से सीख
परोपकारी राजा की कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि सच्चे परोपकारी व्यक्ति की परीक्षा करना व्यर्थ है, क्योंकि सच्ची उदारता और दयालुता कभी नष्ट नहीं होती। जो दूसरों का भला सोचता है, वह अंततः सबका सम्मान और प्रेम जीतता है।
सच्चे राजा का धर्म है अपने प्रजाजनों की भलाई के लिए हर संभव प्रयास करना। और यह भी कि किसी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन उसके आचरण से किया जाना चाहिए, न कि उसकी स्थिति या धन से।
इस प्रकार, राजेंद्र और बल्देव की कहानी एक प्रेरणा बन गई, जो बताती है कि जब हम एक-दूसरे की मदद करते हैं और दया का हाथ बढ़ाते हैं, तो समाज में असली खुशहाली और समृद्धि आती है।
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