डरपोक भूत की कहानी | DarpokBhoot ki Kahani | Panchatantra story in Hindi

डरपोक भूत की कहानी– पुरानी हवेली की कहानी है, जिसकी एक-एक ईंट गुज़रे वक्त की गवाह है। हवेली का भव्य द्वार, जिसकी सजावट कभी शाही थी, अब वक्त की मार झेलते-झेलते जर्जर हो चुका था। हवेली के अंदर एक लंबा गलियारा था जो कमरों की ओर जाता था, और हर कमरा किसी न किसी रहस्य को समेटे हुए था। इस हवेली में एक ऐसा भूत रहता था जिसका नाम था ‘शर्मीलाल’। वह भूतों की दुनिया में ‘डरपोक भूत’ के नाम से मशहूर था।

शर्मीलाल की कहानी भी बड़ी अजीब थी। बचपन में, जब उसे पहली बार भूतिया कामों के लिए तैयार किया गया था, वह एक कुत्ते के पिल्ले को देखकर डर गया था। उसके डरने की वजह से पूरे भूत परिवार में उसकी हँसी उड़ाई जाने लगी। समय बीतता गया, और शर्मीलाल ने भी कोशिशें जारी रखीं, लेकिन हर बार उसका डर उस पर हावी हो जाता था। वह कभी छिपकली से डर जाता, तो कभी हवेली की छत पर उड़ते चमगादड़ों से।

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हेलो दोस्तो ! आपका इस वेबसाइट में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “डरपोक भूत की कहानी"| Hindi Kahani | हिंदी कहानी | Hindi Story" यह एक Motivational Story है। अगर आपको Hindi KahaniShort Story in Hindi या English Short story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

एक बार, हवेली में एक दलाल आया था। हवेली को बेचने की उसकी योजना थी। दलाल ने हवेली का मुआयना शुरू किया और हर कमरे में जाकर देखा। शर्मीलाल ने सोचा कि अब उसे कुछ करना चाहिए। उसने दलाल को डराने के लिए एक कमरे की खिड़की को जोर से पटका, परंतु उसकी ही आवाज़ सुनकर वो इतना डर गया कि ख़ुद ही कमरे के कोने में दुबक गया। दलाल ने भूत की इन कोशिशों को समझ लिया और सोचा कि वह एक ‘डरपोक भूत’ है।

हवेली में कुछ बच्चों के आने का भी एक वाकया हुआ। वे खेलते-कूदते हवेली में घुस आए। शर्मीलाल ने सोचा कि यह सही मौका है। उसने अपने हाथ से एक पुराना पियानो बजाना शुरू किया, लेकिन गलत सुर छेड़ दिए। बच्चे उसकी इस हरकत को देखकर पहले डर गए, फिर जब सुर बिगड़े, तो जोर-जोर से हँसने लगे। शर्मीलाल को अपनी नाकामयाबी पर गुस्सा आया, लेकिन वो भी हँस दिए बिना नहीं रह सका।

एक शाम, हवेली में एक लेखक आया था। उसने हवेली की पुरानी कहानियों को लिखने की ठानी थी। शर्मीलाल ने लेखक को डराने की पूरी तैयारी कर ली। उसने छत से एक पुराने झाड़ को गिराना चाहा, पर झाड़ उसके ऊपर ही गिर पड़ा। लेखक ने जब उसे देखा, तो बोला, “अरे! ये तो डरा हुआ भूत है।” लेखक की इस बात से शर्मीलाल ने महसूस किया कि डराना तो उसकी फितरत में है ही नहीं।

उस लेखक के जाने के बाद, शर्मीलाल ने सोचा कि अब उसे कुछ करना होगा। ऐसे ही डरते-डरते जिंदगी नहीं कट सकती। उसने हवेली के खंडहर को अपने अंदाज में सजाने की कोशिश शुरू की। एक दिन, जब उसने अपने पुराने झाड़-फानूस की सफाई की कोशिश की, तो वह धूल और जंग से इतना भर गया कि उसकी छींकें अनियंत्रित हो गईं। हवेली में सफाई का नामोनिशान होते देख, उसकी छींकें हवा में गूँजने लगीं। जो लोग हवेली के पास से गुज़र रहे थे, उन्हें लगा कि हवेली में कोई अनजान ताकत सक्रिय हो गई है, लेकिन असल में यह सिर्फ शर्मीलाल की सफाई का असर था। (डरपोक भूत की कहानी)

एक शाम, हवेली में एक दल आया। उनमें कुछ नौजवान थे जो भूतों की कहानियाँ सुनने और उनसे रुबरू होने का शौक रखते थे। उनमें से एक लड़का, जिसका नाम रोहन था, बाकी दोस्तों से अलग था। वह वाकई में इस भूत से बात करना चाहता था। जब उसके दोस्तों ने हवेली के मुख्य हॉल में कदम रखा, शर्मीलाल ने उनको डराने की कोशिश की। उसने एक बार फिर से खिड़कियों को जोर से पटका, लेकिन इस बार उसकी उँगली फँस गई और वह दर्द से चिल्ला उठा।

रोहन ने उस आवाज़ को सुना और वह आवाज़ की ओर चल पड़ा। जब उसने एक कमरे में शर्मीलाल को अपनी उँगली को सहलाते हुए देखा, तो वह हँसते-हँसते लोटपोट हो गया। शर्मीलाल की हालत देखकर, रोहन ने उसके साथ संवाद करने की कोशिश की। वह बोला, “अरे भूत जी, आप तो हमें डराने से ज्यादा खुद ही डर जाते हैं।”

शर्मीलाल, जो पहले थोड़ा अचंभित था, फिर रोहन की बात सुनकर हँस पड़ा। उसने पहली बार महसूस किया कि उसके डरपोक होने में भी एक मज़ेदार पहलू था। रोहन ने उसे समझाया कि लोगों को डराना ही भूतों का काम नहीं होता, बल्कि उनके साथ हँसना-बोलना भी एक अच्छा काम हो सकता है। शर्मीलाल ने रोहन की बातों में दिलचस्पी ली। उसने सोचा कि क्यों न एक बार लोगों से घुल-मिलकर देखा जाए। क्या पता, डर और हँसी का नया रूप उसे कुछ नया सिखा जाए।

हवेली के दूसरे कोनों में बैठे रोहन के दोस्त यह सब देख रहे थे। उन्हें शर्मीलाल की हरकतें और उसकी बातें इतनी मज़ेदार लगीं कि वे भी उससे मिलने आ गए। उन्होंने शर्मीलाल को डराने की नहीं, बल्कि उसकी कहानियाँ सुनने की बात की। शर्मीलाल के पास भी कहानियों की कमी नहीं थी। (डरपोक भूत की कहानी)

जैसे-जैसे शर्मीलाल की कहानियाँ आगे बढ़ती गईं, रोहन और उसके दोस्तों को हवेली की हर दीवार, हर खिड़की, और हर सीढ़ी के पीछे छुपे रहस्य के बारे में पता चलता गया। शर्मीलाल ने उन्हें बताया कि कैसे हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास का पुराना पेड़ उसकी छुपन-छुपाई का अड्डा था और कैसे वो पियानो की गलत धुनों से खुद भी डर जाता था। इन बातों को सुनकर, रोहन और उसके दोस्त ठहाके लगाकर हँसने लगे।

एक दिन, हवेली में एक नया मोड़ आया। रात के अँधेरे में, हवेली के आसपास एक रहस्यमयी आवाज़ सुनाई देने लगी। हवेली के पुराने झरोखे भी अपने-आप खुलने-बंद होने लगे। शर्मीलाल ने खुद इस अजीबोगरीब घटनाक्रम को देखा तो उसका मन भी घबराने लगा। ऐसा लग रहा था मानो हवेली में कोई नई आत्मा ने कदम रख दिया हो। उसने अपने डर पर काबू पाने के लिए रोहन को पुकारा। रोहन, जो अभी तक हवेली के भेदों को समझने में लगा था, तुरंत अपनी टीम के साथ वहाँ पहुँच गया।

उन्होंने देखा कि हवेली के अंदर का माहौल पूरी तरह से बदल चुका था। अचानक से हवेली में एक नयी रोशनी और ऊर्जा का संचार हो रहा था। हवेली के हर कोने में एक डरावनी धुंध सी फैल गई थी। शर्मीलाल को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। उसने तुरंत रोहन से कहा, “लगता है, हमें इस नयी चुनौती का सामना करना होगा।” रोहन ने भी अपनी टीम के साथ इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। (डरपोक भूत की कहानी)

उन्होंने तय किया कि इस नए भूत को खोजने के लिए उन्हें पूरी हवेली की तलाशी लेनी होगी। सभी ने हाथों में टॉर्च ले रखी थी। हवेली की छत पर जाकर उन्हें एक बड़ा बक्सा दिखा। जैसे ही उन्होंने बक्सा खोला, उसमें से एक चमगादड़ उड़कर बाहर आया। शर्मीलाल, जो इस सबके बीच सबसे ज्यादा डरा हुआ था, तुरंत पीछे की ओर भागा और सीधा हवेली की सबसे ऊंची छत पर चढ़ गया। उसे ऐसा लगा मानो वह सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया हो, लेकिन वास्तव में वह एक कमजोर लकड़ी के टुकड़े पर खड़ा था जो कभी भी गिर सकता था।

जैसे ही लकड़ी का वह टुकड़ा चरमराने लगा, शर्मीलाल को महसूस हुआ कि अब उसे अपने डर का सामना करना होगा। उसने खुद को संभाला और गहरी सांस लेकर लकड़ी के उस टुकड़े को पार किया। यह पहला मौका था जब उसने खुद पर भरोसा दिखाया था। नीचे आने पर, रोहन और उसके दोस्तों ने उसे शाबाशी दी। शर्मीलाल ने महसूस किया कि उसके डर की जड़ें हवेली के पुराने रहस्यों में थी, लेकिन अब उसे खुद पर और अपने दोस्तों पर भरोसा होने लगा था।

उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि यह रहस्यमयी आवाज़ हवेली में घुसे एक पुरानी फिल्म की रिकॉर्डिंग के कारण थी, जो हवा के झोंकों से बजने लगी थी। यह सब जानते ही शर्मीलाल और रोहन की टीम ने राहत की साँस ली। लेकिन इस घटना ने शर्मीलाल को एक नया सबक सिखाया – डर से भागना नहीं, बल्कि उसका सामना करना ही असली बहादुरी है। (डरपोक भूत की कहानी)

अब शर्मीलाल ने फैसला किया कि वह हवेली को एक भूतिया जगह की जगह एक रोचक स्थल बनाएगा, जहाँ लोग उसकी कहानियाँ सुनने आएँगे। उसने रोहन और उसके दोस्तों के साथ मिलकर हवेली के हर कोने को सजाया, और अब हवेली में एक उत्सव का माहौल था। शर्मीलाल, जो कभी खुद से भी डरता था, अब अपनी डरपोक प्रवृत्ति को हँसी में बदलकर लोगों को मनोरंजन देने लगा।

डरपोक भूत की कहानी कहानी से शिक्षा

डरपोक भूत की कहानी– कहानी का नैतिक संदेश यह है कि डर का सामना करके उसे अपने फायदे में बदला जा सकता है। हमें अपने डर से भागना नहीं चाहिए बल्कि उसका सामना करना चाहिए, जिससे हम अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत में बदल सकें। इससे पता चलता है कि हँसी और खुशी का प्रसार करना और दूसरों के साथ सहयोग करना, कभी-कभी डर से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका हो सकता है।

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