Bhagwan Ki Pasand Kya Hai भाग 1: युवक की जिज्ञासा और साधु रामदास का उपदेश
Bhagwan Ki Pasand Kya Hai- कहानी की शुरुआत एक छोटे से गाँव से होती है, जहाँ एक प्रसिद्ध साधु रामदास रहते थे। साधु रामदास को गाँव और आसपास के क्षेत्र में एक विद्वान और संत के रूप में जाना जाता था। लोग उनकी सादगी और जीवन के प्रति उनके गहरे दृष्टिकोण से प्रभावित थे। साधु की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी, और दूर-दराज के लोग जीवन के गूढ़ प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए उनके पास आते थे।
एक दिन एक युवक, जो अपने जीवन के उद्देश्य और भगवान के प्रति अपनी जिज्ञासा को लेकर व्याकुल था, साधु रामदास के पास पहुँचा। युवक के मन में कई सवाल थे, लेकिन उनमें से सबसे बड़ा सवाल यह था, “भगवान की पसंद क्या है? भगवान को कौन लोग प्रिय हैं?”
युवक ने झुककर साधु रामदास को प्रणाम किया और विनम्र स्वर में पूछा, “गुरुजी, मैं लंबे समय से यह जानना चाहता हूँ कि भगवान किस प्रकार के लोगों को पसंद करते हैं? कौन सा आचरण, व्यवहार या गुण भगवान की दृष्टि में सबसे महत्वपूर्ण होता है?”
रामदास ने युवक की ओर देखा और उसकी जिज्ञासा को समझते हुए एक मधुर मुस्कान दी। उन्होंने युवक को अपने पास बैठने का संकेत किया और एक गहरी सांस लेते हुए कहा, “पुत्र, यह प्रश्न हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी उठता है। भगवान का मन समझना कोई आसान कार्य नहीं है, लेकिन उनके उपदेश और मार्गदर्शन हमें इस रहस्य को समझने में मदद करते हैं।” (Bhagwan Ki Pasand Kya Hai)
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साधु रामदास ने युवक को भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन की कथा सुनाते हुए कहा, “भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को दिए अपने उपदेश में यही बताया था कि भगवान उन लोगों को पसंद करते हैं जो जीवन की हर परिस्थिति में समान रहते हैं। चाहे वह सुख हो या दुःख, जय हो या पराजय, वे अपने मन और भावनाओं को संतुलित रखते हैं। ऐसे व्यक्ति ही सच्चे भक्त होते हैं।”
युवक ने ध्यानपूर्वक सुना, लेकिन उसका चेहरा अब भी उलझा हुआ दिखा। वह बोला, “गुरुजी, यह तो समझ में आता है कि हमें समभाव में रहना चाहिए, लेकिन इसे व्यवहार में लाना बहुत कठिन लगता है। जब हम किसी प्रिय व्यक्ति को खो देते हैं या जीवन में बड़ी असफलता का सामना करते हैं, तब हम दुखी और निराश हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में संयम कैसे बनाए रखा जा सकता है?”
रामदास ने उसकी बात सुनकर गहरे ध्यान से उत्तर दिया, “जीवन की घटनाएँ—जन्म, मृत्यु, सुख, दुःख—हमारे जीवन का हिस्सा हैं। हम इन घटनाओं को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन हम अपने मन को नियंत्रित कर सकते हैं। सच्ची धार्मिकता तब प्रकट होती है जब हम अपने मन की स्थिरता को जीवन की कठिनाइयों के बीच भी बनाए रखते हैं। यह भगवान को प्रिय है कि हम किसी भी परिस्थिति में अपने कर्तव्यों का पालन करें और अपने मन को शांति की ओर ले जाएँ।”
फिर रामदास ने एक कहानी सुनाई जो इस बात को और स्पष्ट करती है। उन्होंने कहा, “किसी गाँव में एक किसान था। वह बहुत मेहनती और ईमानदार था, लेकिन उसके जीवन में बहुत कठिनाइयाँ थीं। उसकी फसलें कई बार खराब हो जाती थीं, और कई बार वह कर्ज में डूब जाता था। लेकिन उसने कभी अपनी मेहनत नहीं छोड़ी। एक दिन गाँव में बाढ़ आ गई, और उसकी सारी फसल बर्बाद हो गई। फिर भी, किसान ने धैर्य रखा और भगवान का नाम लेकर नई शुरुआत की। उसकी यह स्थिरता और श्रद्धा ही उसे भगवान के प्रिय भक्तों में स्थान दिलाती है।”(Bhagwan Ki Pasand Kya Hai)
युवक ने इस कहानी को ध्यान से सुना, और उसकी जिज्ञासा कुछ हद तक शांत हुई। फिर भी उसके मन में एक और सवाल आया। उसने पूछा, “गुरुजी, अगर जीवन में बार-बार असफलताएँ आती हैं, तो क्या यह भगवान की इच्छा होती है कि हम असफल हों? क्या यह हमारी परीक्षा होती है?”
रामदास ने उसकी ओर देखते हुए कहा, “भगवान कभी नहीं चाहते कि हम असफल हों। लेकिन असफलताएँ हमारे लिए एक अवसर होती हैं, जिससे हम सीखते हैं, और ये हमें मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाती हैं। जब हम जीवन में चुनौतियों का सामना करते हैं, तो यह हमें सिखाता है कि कैसे संयमित और धैर्यवान बनना है। भगवान हमें वह देते हैं जो हमारे लिए सही होता है, लेकिन हमारी परीक्षा इस बात में होती है कि हम उन परिस्थितियों का सामना कैसे करते हैं।”
यह सुनकर युवक के चेहरे पर शांति और संतोष की झलक आई। वह समझ गया था कि जीवन की चुनौतियाँ केवल कठिनाइयाँ नहीं हैं, बल्कि हमें विकसित करने और हमें भगवान के निकट लाने के साधन हैं। (Bhagwan Ki Pasand Kya Hai)
रामदास ने युवक की ओर देखा और कहा, “सत्य यही है कि भगवान हमें उन लोगों के रूप में देखना चाहते हैं, जो हर परिस्थिति में संयम और संतुलन बनाए रखते हैं। यही उनके लिए सबसे प्रिय है। जब हम अपने मन को शांत रखते हैं और अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, तो हम उनके समीप पहुँचते हैं।”
इसके बाद, साधु रामदास ने युवक को एक और महत्वपूर्ण बात बताई। उन्होंने कहा, “भगवान की पसंद के बारे में जानने के लिए हमें केवल एक चीज पर ध्यान देना चाहिए—निस्वार्थ भक्ति और सेवा। भगवान को उन लोगों से प्रेम है जो निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करते हैं और बिना किसी स्वार्थ के उनकी भक्ति करते हैं। जब हम अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को त्याग कर भगवान और दूसरों के प्रति समर्पित होते हैं, तब हम सच्चे अर्थों में भगवान के प्रिय बन जाते हैं।”
युवक अब पूरी तरह संतुष्ट था। उसने रामदास के चरणों में प्रणाम किया और उनसे आशीर्वाद माँगा। रामदास ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, “तुम्हारी जिज्ञासा और समर्पण ने तुम्हें सच्चाई के करीब ला दिया है। अब यह तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम इस ज्ञान को अपने जीवन में उतारो और अन्य लोगों के साथ भी बाँटो।”
साधु रामदास का उपदेश युवक के जीवन को बदलने वाला साबित हुआ। वह गाँव लौट आया और भगवान की भक्ति और सेवा में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। उसने हर परिस्थिति में संयम और संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया, और धीरे-धीरे वह एक सच्चे भक्त के रूप में प्रसिद्ध हो गया। (Bhagwan Ki Pasand Kya Hai)
Bhagwan Ki Pasand Kya Hai भाग 2: सद्गुणों का महत्व और जीवन का सार
साधु रामदास के उपदेशों से प्रभावित होकर, युवक गोपाल अपनी जिज्ञासा और गहरे आत्मिक परिवर्तन की खोज में था। रामदास के शब्दों ने उसके मन में एक नई जागृति पैदा की थी, और वह जानना चाहता था कि भगवान के प्रिय बनने के लिए किस प्रकार का जीवन जिया जाए। रामदास ने यहूदियों की एक प्राचीन कथा का उल्लेख करते हुए गोपाल को समझाया कि भगवान को कौन से लोग प्रिय होते हैं और किन्हें वह पसंद नहीं करते।
रामदास ने कहा, “भगवान को घमंड, झूठ और पापी प्रवृत्तियों वाले लोग पसंद नहीं हैं। जो अपने जीवन में अहंकार पालते हैं, दूसरों को नीचा दिखाते हैं और अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलते हैं, वे भगवान की दृष्टि में गिर जाते हैं। भगवान को वे लोग प्रिय हैं जो सत्य बोलते हैं, दूसरों की निस्वार्थ सेवा करते हैं, और सद्मार्ग पर चलते हैं। वे ऐसे लोग हैं जो अपने मन, वचन और कर्म में पवित्रता रखते हैं।”
गोपाल ने रामदास से पूछा, “गुरुजी, यह तो समझ में आता है कि सत्य और सेवा का मार्ग श्रेष्ठ है, लेकिन इस मार्ग पर चलना बहुत कठिन होता है। बहुत से लोग इस संसार की भौतिक सुख-सुविधाओं और महत्वाकांक्षाओं में उलझ जाते हैं। ऐसे में सद्गुणों का अभ्यास कैसे किया जा सकता है?”
रामदास ने गंभीरता से कहा, “सद्गुणों को प्राप्त करने के लिए गहन अभ्यास, ध्यान, और सद्गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक होता है। यह कोई सरल कार्य नहीं है। सत्य, धैर्य, करुणा, और अहिंसा जैसी गुणों को केवल पढ़ाई या सुनने से नहीं अपनाया जा सकता। इसके लिए गहरे आत्म-विश्लेषण, ध्यान, और सतत प्रयास की आवश्यकता होती है। जब हम अपने भीतर की इच्छाओं और लालसाओं से मुक्ति पाने का प्रयास करते हैं, तब हम सच्चे अर्थों में ईश्वर की ओर अग्रसर होते हैं।”
रामदास ने फिर एक और कथा सुनाई। उन्होंने कहा, “प्राचीन समय की बात है, एक राजा था जो अपने राज्य के सबसे बुद्धिमान संत से मिलने गया। राजा ने संत से पूछा, ‘मुझे जीवन का सार सिखाओ।’ संत ने कहा, ‘राजन, जीवन का सार केवल उन लोगों के लिए प्रकट होता है जो अपने भीतर की आवाज को सुनते हैं और सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं। जब तुम दूसरों की मदद करते हो, अपने अहंकार को त्यागते हो और अपने कर्तव्यों को निस्वार्थ भाव से निभाते हो, तभी तुम जीवन के वास्तविक अर्थ को समझ पाते हो।’ राजा ने उस दिन से सद्गुणों का पालन करना शुरू किया, और धीरे-धीरे उसे समझ आया कि जीवन में सच्ची सफलता और शांति केवल अच्छे कर्मों से ही प्राप्त होती है।” (Bhagwan Ki Pasand Kya Hai)
रामदास ने गोपाल को बताया कि जीवन में सफल होने का अर्थ केवल धन और प्रसिद्धि प्राप्त करना नहीं है, बल्कि सच्ची सफलता उस व्यक्ति की होती है जिसने अपनी आत्मा के साथ शांति बना ली हो। “जो व्यक्ति अपनी आत्मा के साथ शांति में होता है, वह हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखता है। वह न किसी से ईर्ष्या करता है, न किसी पर क्रोध करता है। वह सबके साथ समान व्यवहार करता है।”
यह सुनकर गोपाल के मन में एक नया प्रश्न उठा। उसने साधु से पूछा, “गुरुजी, सद्गुणों का अभ्यास करना तो समझ में आता है, लेकिन समाज में रहते हुए जब लोग हमें आहत करते हैं या अन्याय करते हैं, तब किस प्रकार संयम बनाए रखें? ऐसे समय में तो क्रोध आना स्वाभाविक होता है।”
रामदास ने गहरे ज्ञान के साथ उत्तर दिया, “पुत्र, यह सत्य है कि समाज में अन्याय और आघात से बचा नहीं जा सकता, लेकिन संयम और धैर्य ही वह गुण हैं जो तुम्हें सच्चा भक्त बनाएंगे। जब लोग तुम्हें आहत करते हैं, तब भगवान तुम्हारी परीक्षा लेते हैं। तुम चाहे क्रोधित हो जाओ या संयम रखो, यह तुम्हारे कर्मों का निर्णय है। क्रोध से केवल विनाश होता है, लेकिन संयम और क्षमा से तुम्हारे भीतर की शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है। भगवान ने हमें यह जीवन दिया है ताकि हम अपनी आत्मा को शुद्ध करें, और क्रोध, ईर्ष्या, और अहंकार का त्याग करें। यही सच्ची साधना है।”
फिर रामदास ने उसे ध्यान और आत्मनिरीक्षण की ओर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी। “ध्यान के माध्यम से तुम अपने मन को नियंत्रित कर सकते हो। जब भी तुम क्रोध या दुःख का सामना करो, बस अपनी आँखें बंद करो और भगवान का स्मरण करो। धीरे-धीरे तुम्हारे मन का विषाद समाप्त हो जाएगा और शांति का अनुभव होगा। जो व्यक्ति ध्यान के माध्यम से अपने मन को शांति में रखता है, वही भगवान के सच्चे भक्तों में गिना जाता है।” (Bhagwan Ki Pasand Kya Hai)
गोपाल ने साधु के शब्दों को ध्यान से सुना और अपने जीवन में इन बातों को उतारने का निश्चय किया। उसने तय किया कि वह अब अपने जीवन में सद्गुणों को धारण करेगा और हर परिस्थिति में संयम और संतुलन बनाए रखेगा। उसने साधु रामदास से कहा, “गुरुजी, आपने मुझे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान दिया है। अब मैं अपने जीवन को सच्ची भक्ति और सेवा के मार्ग पर चलाऊँगा।” (Bhagwan Ki Pasand Kya Hai)
रामदास ने गोपाल को आशीर्वाद दिया और कहा, “पुत्र, यह जान लो कि मानव जन्म मिलना एक बहुत बड़ा सौभाग्य है, लेकिन सद्गुरु का साथ मिलना परम सौभाग्य है। जब सद्गुरु का मार्गदर्शन मिलता है, तो आत्मज्ञान की प्राप्ति आसान हो जाती है। तुम अब एक नए जीवन की ओर बढ़ रहे हो। सद्गुणों का अभ्यास तुम्हारे जीवन को महान बनाएगा और तुम्हें भगवान के प्रिय भक्तों में स्थान दिलाएगा।”
गोपाल ने गुरु के चरणों में प्रणाम किया और अपने गाँव लौट आया। उसने अपने जीवन में ध्यान, सेवा, और संयम का अभ्यास करना शुरू किया। गाँव में लोग उसकी शांति और संतुलित व्यवहार से प्रभावित होते थे। धीरे-धीरे उसकी प्रतिष्ठा एक सच्चे भक्त और सज्जन व्यक्ति के रूप में बनने लगी।
समय बीतने के साथ गोपाल ने न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन में सफलता पाई, बल्कि उसने गाँव के कई लोगों को भी सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। वह दूसरों की सहायता करता, असहायों की सेवा करता, और किसी भी परिस्थिति में संयम बनाए रखता। गोपाल अब पहले जैसा युवक नहीं रहा। उसने जीवन के गहरे सत्य को समझा और अपने भीतर आत्मज्ञान की प्राप्ति की।(Bhagwan Ki Pasand Kya Hai End)
Bhagwan Ki Pasand Kya Hai कहानी का अंत और युवक का आत्मिक परिवर्तन
गोपाल का यह परिवर्तन देखकर गाँव के लोग उससे प्रेरणा लेने लगे। वह अब न केवल अपने जीवन में सफल हो चुका था, बल्कि दूसरों के लिए भी एक उदाहरण बन गया था। साधु रामदास के उपदेश और उनके द्वारा सिखाए गए सद्गुणों के अभ्यास ने उसे पूरी तरह से बदल दिया था। अब गोपाल एक शांत, संयमित और सदाचारी व्यक्ति बन चुका था, जो हर परिस्थिति में भगवान का स्मरण करता और सद्मार्ग पर चलता था।
रामदास के शब्दों ने गोपाल के जीवन को एक नई दिशा दी थी। उसने समझा कि जीवन का सार केवल भौतिक सुख-सुविधाओं में नहीं है, बल्कि सच्चे सद्गुणों और संयमित जीवन में है। वह जान गया था कि भगवान को वही लोग प्रिय होते हैं जो सत्य, सेवा, और सद्गुणों का पालन करते हैं।
Bhagwan Ki Pasand Kya Hai कहानी का नैतिक:
सत्य और सेवा ही जीवन का सार हैं। भगवान को वही प्रिय होते हैं जो हर परिस्थिति में सत्य के साथ खड़े रहते हैं और दूसरों की निस्वार्थ भाव से मदद करते हैं। यही सच्चा जीवन है। घमंड, झूठ और पापी प्रवृत्तियों से बचना चाहिए।
संयम और संतुलन बनाए रखना: जीवन में हर परिस्थिति में संयम और संतुलन बनाए रखना चाहिए। चाहे कितनी भी कठिनाई हो, संयम और धैर्य ही सफलता की कुंजी है।
ध्यान और आत्मनिरीक्षण का महत्व: ध्यान के माध्यम से अपने मन को शांत करना और सद्गुणों का अभ्यास करना ही सच्ची साधना है।
सद्गुरु का मार्गदर्शन: सद्गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करना जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है। उनके उपदेशों से आत्मज्ञान और सही मार्ग की प्राप्ति होती है।
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