Akbar aur Birbal Ki Kahani भाग 1
Akbar aur Birbal Ki Kahani- अकबर का दरबार हमेशा न्याय और ईमानदारी का प्रतीक रहा था। हर दिन देश-विदेश से लोग अपने मसले लेकर यहाँ आते थे, और अकबर हमेशा सभी की सुनते थे। लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जो पूरे दरबार को हिला कर रख दिया। अकबर के राजमहल से बहुमूल्य गहनों और सिक्कों की चोरी हो गई। यह घटना दरबार के सभी लोगों के लिए आश्चर्यजनक थी। सिपाही चारों ओर तैनात थे, फिर भी चोरी हो जाना चौंकाने वाला था।
अकबर का कोष हर दिन कड़ी निगरानी में रहता था, लेकिन उस दिन दरबार से कुछ बहुमूल्य रत्न गायब हो गए। चोरी के समय चार सिपाही पहरे पर थे, और उन पर ही शक की सुई आकर ठहर गई। अकबर को जब इस घटना का पता चला तो उन्होंने तुरंत उन चार सिपाहियों को दरबार में बुलाया। उनके चेहरे पर क्रोध और चिंता साफ झलक रही थी।
“यह चोरी किसने की?” अकबर ने सख्त आवाज़ में पूछा।
चारों सिपाही एक स्वर में बोले, “जहांपनाह, हम में से किसी ने चोरी नहीं की। हम तो पूरी ईमानदारी से अपना काम कर रहे थे।”
अकबर ने उनकी बात सुन ली, लेकिन उनके मन में संदेह बरकरार था। वे जानते थे कि चोरी करने वाला कोई न कोई इन चारों में से ही था, क्योंकि चोरी उसी समय हुई जब ये सिपाही पहरे पर थे।
अकबर को सिपाहियों की सफाई पर यकीन नहीं हुआ। अकबर ने तय किया कि असली चोर का पता लगने तक चारों सिपाहियों पर नजर रखी जाएगी। “इस मामले की तह तक जाना जरूरी है।” अकबर ने गहरी आवाज में कहा। “जब तक चोर का पता नहीं चलता, मैं किसी को नहीं छोड़ूंगा।”
अकबर का आदेश था कि कोई भी सिपाही दरबार से बाहर नहीं जाएगा। चारों सिपाही परेशान और बेचैन थे। वे एक-दूसरे को देख रहे थे, लेकिन किसी के चेहरे से कुछ साफ नहीं हो रहा था।
जब दरबार में यह सब हो रहा था, तभी बीरबल दरबार में आए। बीरबल अकबर के सबसे चतुर और विश्वस्त सलाहकार थे। उनकी बुद्धिमानी और चतुराई के किस्से दूर-दूर तक फैले थे। बीरबल ने अकबर की चिंता देखी और उनकी मदद करने का फैसला किया।
“जहांपनाह, आप परेशान न हों। मैं एक रात के भीतर असली चोर का पता लगा सकता हूँ,” बीरबल ने आत्मविश्वास से कहा।
अकबर ने तुरंत बीरबल की बात पर ध्यान दिया। “कैसे? क्या तुम्हारे पास कोई योजना है?” अकबर ने पूछा।
बीरबल मुस्कुराए और बोले, “जी हां, जहांपनाह। लेकिन इसके लिए मुझे इन चारों सिपाहियों को एक खास उपाय बताना होगा।”
बीरबल ने चारों सिपाहियों को एक-एक लकड़ी दी, जो देखने में साधारण लग रही थी। लेकिन बीरबल ने इन लकड़ियों के बारे में एक खास बात बताई।
“यह साधारण लकड़ी नहीं है,” बीरबल ने गंभीर स्वर में कहा। “यह जादुई लकड़ी है। इसमें एक खास शक्ति है। जो भी चोर होगा, उसकी लकड़ी अपने आप 3 इंच छोटी हो जाएगी। और मैं यह बात कल सुबह पता करूँगा। इसलिए, आप सब अपनी लकड़ी रात भर अपने पास रखें।”
चारों सिपाही हैरान थे। उन्होंने बीरबल की बात मान ली और लकड़ियाँ अपने पास रख लीं। दरबार के सभी लोग भी इस योजना को जानने के लिए उत्सुक थे। बीरबल ने अपनी योजना के बारे में किसी को और कुछ नहीं बताया, और सभी इंतजार करने लगे कि सुबह क्या होगा।
रातभर सिपाहियों के दिलों में बेचैनी और शक की लहरें उठती रहीं। चारों ने अपनी-अपनी लकड़ियाँ अपने पास रख लीं, लेकिन उनके मन में सवाल उठ रहे थे। उनमें से कोई चोर नहीं था, तो क्या सच में जादुई लकड़ी छोटी हो जाएगी? या फिर यह सिर्फ बीरबल की चाल थी?
एक सिपाही, जिसका नाम रमेश था, काफी चिंतित दिख रहा था। वह बार-बार अपनी लकड़ी को देख रहा था। उसकी आँखों में डर और चिंता साफ झलक रही थी। बाकी सिपाही भी उसकी चिंता को देख रहे थे, लेकिन वे समझ नहीं पा रहे थे कि रमेश क्यों इतना बेचैन है।
रात काफी लंबी थी, और धीरे-धीरे सभी सिपाही सोने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन उनके मन में बीरबल की जादुई लकड़ी की बात घूम रही थी।
सुबह का सूरज दरबार में उम्मीद और रहस्य लेकर आया। अकबर और बीरबल ने चारों सिपाहियों को फिर से बुलाया। हर सिपाही अपनी लकड़ी लेकर हाज़िर हुआ।
बीरबल ने सिपाहियों से कहा, “अपनी-अपनी लकड़ियाँ मुझे दो, ताकि मैं देख सकूँ कि किसकी लकड़ी छोटी हुई है।”
सभी सिपाहियों ने लकड़ियाँ बीरबल को दीं। बीरबल ने गौर से लकड़ियों को देखा और एक लकड़ी को देखकर मुस्कुरा दिए।
“जहांपनाह, असली चोर का पता चल गया है।” बीरबल ने शांत स्वर में कहा।
अकबर ने उत्सुकता से पूछा, “कौन है वह?”
बीरबल ने रमेश की लकड़ी को दिखाते हुए कहा, “यह रही चोर की लकड़ी। यह लकड़ी छोटी नहीं हुई, बल्कि यह सिपाही खुद इसे काटकर छोटा कर गया है, क्योंकि उसे डर था कि उसकी लकड़ी जादुई तरीके से छोटी हो जाएगी।”
रमेश का चेहरा शर्म और भय से सफेद पड़ गया। उसने झुककर अकबर के सामने अपनी गलती मानी और बताया कि उसने ही चोरी की थी। बाकी सिपाही चौंक गए। अकबर ने तुरंत रमेश को दंड देने का आदेश दिया और चोरी का सामान बरामद करवाया।
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बीरबल की इस चतुर योजना से दरबार के सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। यह कोई जादू नहीं था, बल्कि बीरबल की मनोविज्ञान पर आधारित चाल थी। उन्होंने यह समझ लिया था कि असली चोर डर के मारे लकड़ी को छोटा कर देगा। (Akbar aur Birbal Ki Kahani)
अकबर ने बीरबल की तारीफ करते हुए कहा, “तुम्हारी बुद्धिमानी और चतुराई हमेशा की तरह बेमिसाल है। तुमने इस मुश्किल को इतनी आसानी से सुलझा लिया।”
बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “जहांपनाह, यह तो आपका आशीर्वाद है।”
Akbar aur Birbal Ki Kahani का अगला भाग
अब चोरी की सजा तय हो चुकी थी, लेकिन रमेश के इस अपराध के पीछे क्या कोई और कारण था? क्या वह खुद इस चोरी का मास्टरमाइंड था या फिर किसी और ने उसे मजबूर किया? यह एक ऐसा सवाल था जिसका जवाब अभी बाकी था। अकबर और बीरबल ने तय किया कि इस मामले की जड़ तक पहुँचना जरूरी है। रमेश के पीछे कौन था, और क्या राजमहल में कोई और षड्यंत्र चल रहा था?
Akbar aur Birbal Ki Kahani भाग 2
चोरी की घटना के बाद अकबर के दरबार में घबराहट का माहौल था। चारों सिपाहियों को रातभर के लिए जेल में बंद कर दिया गया था, और उनके पास बीरबल की दी हुई जादुई लकड़ियाँ थीं। सिपाही परेशान थे, खासकर वह सिपाही जिसने चोरी की थी। उसके मन में डर था कि यदि उसने कुछ नहीं किया तो सुबह उसकी चोरी पकड़ में आ जाएगी। वह बेचैन हो उठा, और रातभर सोचता रहा कि क्या उसे लकड़ी काट देनी चाहिए या नहीं। अंततः उसके डर ने उसे मजबूर कर दिया, और उसने लकड़ी के तीन इंच काट दिए ताकि वह छोटी हो जाए और वह चोरी के शक से बच जाए।
जेल के भीतर सभी सिपाही बेचैनी महसूस कर रहे थे। उनमें से कुछ सोच रहे थे कि क्या वाकई लकड़ी जादुई थी, और क्या वह अपने आप छोटी हो जाएगी। चोरी करने वाला सिपाही, जिसका नाम रमेश था, सबसे अधिक डर में था। उसे यकीन हो चुका था कि यदि उसने लकड़ी को नहीं काटा तो सुबह उसका पर्दाफाश हो जाएगा। अपने डर और अपराधबोध से प्रेरित होकर, उसने लकड़ी को काटने का निर्णय लिया। उसने धीरे-धीरे लकड़ी को तीन इंच छोटा कर दिया, ताकि कोई उस पर शक न करे।
बाकी सिपाही भी चिंतित थे, लेकिन वे जानते थे कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया, इसलिए वे लकड़ी को काटने की बात कभी सोच भी नहीं सकते थे।
सुबह होते ही बीरबल ने चारों सिपाहियों को दरबार में बुलाया। सभी लोग बीरबल की योजना के नतीजे को जानने के लिए उत्सुक थे। चारों सिपाही अपनी-अपनी लकड़ियाँ लेकर हाज़िर हुए। बीरबल ने प्रत्येक सिपाही की लकड़ी की लंबाई की जांच की। तीन सिपाहियों की लकड़ियाँ बिल्कुल वैसी की वैसी थीं, जैसी रात को दी गई थीं। लेकिन रमेश की लकड़ी तीन इंच छोटी हो चुकी थी।
बीरबल ने अकबर की तरफ मुड़कर कहा, “जहांपनाह, असली चोर यही है। इसने अपनी लकड़ी को खुद छोटा कर दिया है क्योंकि इसे डर था कि जादुई लकड़ी चोरी के कारण छोटी हो जाएगी।”
अकबर ने रमेश की ओर देखा, जिसका चेहरा डर और शर्मिंदगी से लाल हो चुका था। उसकी आँखें नीची थीं और हाथ काँप रहे थे। रमेश ने कोई बहाना बनाने की कोशिश भी नहीं की, क्योंकि वह जानता था कि उसकी चोरी पकड़ी जा चुकी है। (Akbar aur Birbal Ki Kahani)
अकबर ने सख्त आवाज़ में पूछा, “क्यों, रमेश? तुमने ऐसा क्यों किया? तुम्हारी ज़िम्मेदारी महल की सुरक्षा करना थी, लेकिन तुमने उसी महल में चोरी की।”
रमेश ने धीरे से सिर उठाया और कांपते हुए कहा, “जहांपनाह, मुझसे बड़ी गलती हो गई। मैं लालच में आ गया था। मेरी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, और मुझे लगा कि अगर मैं महल से थोड़ी दौलत चुरा लूंगा, तो मेरी समस्याएं हल हो जाएंगी। लेकिन अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। कृपया मुझे माफ कर दीजिए।”
अकबर ने गहरी साँस ली और कहा, “रमेश, तुम्हारा जुर्म बहुत बड़ा है। अपनी आर्थिक समस्याओं का हल चोरी से निकालने की बजाय, तुम्हें ईमानदारी से काम करके उसे हल करना चाहिए था। चोरी कभी किसी की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकती।” (Akbar aur Birbal Ki Kahani)
अकबर ने फिर बीरबल की ओर देखा और पूछा, “बीरबल, तुमने कैसे जाना कि लकड़ी काटने का यही तरीका चोर को पकड़ने का होगा?”
बीरबल ने विनम्रता से जवाब दिया, “जहांपनाह, यह योजना मनोविज्ञान पर आधारित थी। मैंने चोर के मन की हालत को समझते हुए यह योजना बनाई। जब मैंने कहा कि लकड़ी जादुई है और चोर की लकड़ी छोटी हो जाएगी, तो सच्चे सिपाही चिंता नहीं करेंगे, क्योंकि वे निर्दोष थे। लेकिन चोर को यह डर सताएगा कि उसकी चोरी पकड़ी जाएगी, और वह घबराकर अपनी लकड़ी खुद काट देगा। यह उसका मनोवैज्ञानिक दबाव था जिसने उसे यह गलती करने पर मजबूर कर दिया।”
अकबर बीरबल की इस चतुराई से बहुत प्रसन्न हुए। “तुम्हारी बुद्धिमत्ता ने फिर से इस राज्य को एक बड़ी मुश्किल से बचा लिया, बीरबल। मैं तुमसे हमेशा कुछ न कुछ नया सीखता हूँ,” अकबर ने कहा।
रमेश की चोरी का पर्दाफाश हो चुका था, और अब अकबर को उसे सजा देनी थी। अकबर ने गहरी सोच में डूबते हुए कहा, “रमेश, तुम्हारा जुर्म माफी योग्य नहीं है। तुम्हें इस राज्य की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया था, लेकिन तुमने इस विश्वास का दुरुपयोग किया। तुम्हें अपनी इस गलती का दंड भुगतना होगा।”
अकबर ने रमेश को जेल भेजने का आदेश दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि अगर वह भविष्य में अपने कर्मों से सुधरता है, तो उसे दूसरा मौका दिया जा सकता है।
इसके बाद, अकबर ने शेष तीन सिपाहियों को बधाई दी और उनके ईमानदार सेवाभाव के लिए इनाम दिया। उन्होंने कहा, “आप सभी ने अपनी ईमानदारी से हमारे विश्वास को बनाए रखा है, और यही ईमानदारी इस राज्य की असली शक्ति है।” (Akbar aur Birbal Ki Kahani)
बीरबल की इस समझदारी ने एक बार फिर अकबर के दरबार को गौरवान्वित किया। पूरे राज्य में बीरबल की तारीफ होने लगी। लोग अकबर की न्यायप्रियता और बीरबल की बुद्धिमत्ता के किस्से दूर-दूर तक सुनाने लगे।
अकबर ने दरबार के अंत में कहा, “इस राज्य को चलाने में न केवल राजा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, बल्कि उसके सलाहकारों की बुद्धिमानी भी। और बीरबल, तुम्हारी सलाह और चतुराई के बिना इस दरबार में न्याय नहीं हो सकता था।”
बीरबल ने विनम्रता से सिर झुका कर अकबर की प्रशंसा का जवाब दिया, “जहांपनाह, यह सब आपकी कृपा और विश्वास के कारण ही संभव हो पाया है।” (Akbar aur Birbal Ki Kahani END)
Akbar aur Birbal Ki Kahani का नैतिक संदेश
इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि सत्य को कभी छुपाया नहीं जा सकता। चाहे कोई कितना भी कोशिश कर ले, सच हमेशा सामने आ ही जाता है।
Akbar aur Birbal Ki Kahani-यह भी सीखने को मिलता है कि जीवन में सदा ईमानदारी और सही मार्ग का पालन करना चाहिए। झूठ, धोखा और चोरी जैसे कार्य जीवन में कभी स्थायी समाधान नहीं ला सकते, बल्कि वे अंततः हमें ही नुकसान पहुँचाते हैं।
सच्चाई और ईमानदारी ही वह नींव है जिस पर जीवन का सही अर्थ और सफलता खड़ी होती है।
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